जो कभी ना
करती है मुझे दिल से याद
जिसे कभी ना
सुनाई देती है मेरी फ़रियाद
जिसे कभी करीब
से देखा ही नहीं
ऐसे पत्थर की
मैं क्यों पूजा करता हूँ
फिर ऐसे हरज़ाई
के लिए , मैं क्यों तडपता हूँ ?
मैं रात भर
जागूं या दिन भर रहूँ बैचैन
बिस्तर पे
करवट बदलू या खो दूँ अपना चैन
यूँ भटकूँ
अनज़ान राहों पर या पथरा दूँ अपने नैन
उसे नहीं है
फ़िक्र मेरी की दे कुछ अपनी भी रैन
फिर ऐसे बेदर्द
के लिए , मैं क्यों तडपता हूँ ?
जिसमें अकड़ है इतनी की ऐंठन भी शर्मा जाये
उसका दिल है इतना कठोर की पत्थर भी नर्म पड़ जाए
उसके संकल्प के आगे तो अंगद भी हिल जाए
जिसे कभी हुई ही ना मोहब्बत
फिर ऐसी जोगन के लिए , मैं क्यों तड़पता हूँ ?
By
Kapil Kumar

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