Sunday 18 December 2016

आधुनिक भारत का तुगलक - भाग 2




भारत सरकार  ने एक  दिन रात के 8 बजे घोषणा करके देश में चलने वाले 500 और 1,000 के नोट को अमान्य घोषित कर दिया ... अब यह फैसला कितने दिल और दिमाग से लिया गया है इसके परिणाम आने लगे है ...शर्म और दुःख की बात यह है की तुगलकी फरमान एक  के बाद एक ज़ारी है ...वर्तमान सरकार और नौकरशाही अपनी गलतियों से सबक ना लेकर एक के बाद एक  उल्ल ज़लूल   फैसला ले रही है , जिसमे ना तो कोई समझदारी है ना ही दूरदर्शिता ...

अगर आपने कोई फैसला लिया और उसके लागू करने में कोई चूक हुई तो उसे क़बूल  कीजिये ना की एक  गलती को छुपाने के लिए दूसरी फिर तीसरी गलती करके जनता को ग़ुमराह  मत कीजिये ...पर यह बात किसको और कैसे समझाई जाए जब ...समां ऐसा बना हो ...

“बर्बादे  गुलिस्तां करने को एक  ही उल्लू काफी था , अंजामे गुलिस्तां क्या होगा जब हर शाख पर  उल्लू  बैठा है “

नोटबंदी करने की हड़बड़ी में सरकार ने जो जनता की मुसीबत नाम का जिन्न भ्रष्टाचार  की बोतल से बाहर  निकाल दिया  है उसे अब वह किस तरह से अंदर घुसाए , ना तो उसे कुछ समझ आ रहा है ना ही उसे कुछ सुझाई दे रहा है ..असली समस्या यह है की झूठी शान और जिद्द  में घिरा व्यक्ति सिर्फ अपना ही घर बर्बाद नहीं करता वह अपने साथ आने रिश्तेदारों , अडोस -पड़ोस  सब को ले डूबता है ....

आधुनिक तुगलक की मंशा कितनी अच्छी थी या धूर्त यह तो आने वाला वक़्त बताएगा ...पर अभी के लिए हम मान ले की तुगलक ने जो किया देश और जनता की भलाई के लिए किया  ..पर उसका परिणाम क्या निकला उसके लिए एक  सवाल है , जिसे अपने दिल पर हाथ रख कर दे ....

आपने किसी  समझदार दोस्त के साथ बिजनेस किया और दोनों ने मिलाकर 5 लाख का प्रॉफिट कमाया , अब जब प्रॉफिट  बाँटने की बारी आई तो आपके दोस्त ने बईमानी करके 4 लाख खुद हडप लिए और 1 लाख आपको दिया ..आप उसे जीवन  भर  गाली दे रहे है ..की उस धोखेबाज़   ने धोखा दिया और घोटाला किया ....

अब आपने एक  मूर्ख  दोस्त के साथ बिजनेस किया जिसने आपको 2 लाख का घाटा दिया , जिसमे उसने थोड़ी सी बईमानी की और आपको 1.25 लाख का घटा दिया और खुद 75 हजार का घाटा लिया ..अब आप उसकी तारीफ़ करे और कहे की ..भाई यह कितना ईमानदार है ..इसने सिर्फ 25 हजार की बईमानी की ....

तो दोनों घटना आज के परिवेश के लिए है ...की पिछली  सरकार , पहला वाला दोस्त है और वर्तमान  सरकार दूसरा वाला दोस्त है , अब यह आपकी व्यापारिक सोच है की आप किसे इमानदार समझे और किसे बईमान....और किसके साथ व्यापार करने में समझदारी है ...

अच्छी खासी चलती और बढती हुई अर्थवयवस्था को गर्त में डालकर सरकार क्या हासिल करेगी यह तो शेखचिल्ली के सपने जैसा है ...जनता भी कितनी भोली है की अच्छे दिन आयेंगें  ..अरे जरा पुराने दिन को याद करो वह अच्छे थे या यह दिन ...पर कौन किसे और क्या समझाए , जब इन्सान अपनी ही बलि देने पर उतारू हो की उसे जन्नत का टिकेट मिलेगा , फिर ऐसे भक्त के लिए विलाप भी क्या और कैसे किया जाए ?

बात ब्लैक  मनी , आतंकवाद की हुई थी और आज दोनों ही अपने पूरे ज़ोर ख़रोश   में है ...पहले बैंक के बाबू इमानदारी से काम करते थे , सिर्फ इक्का दुक्का बैंक मेनेजर ही किसी तरह के घपले में लिप्त होता , अब आपने बैंक के बाबु , कैशियर को  भी सिखा दिया की बैंक में भी उपरी कमाई कैसे होती है ....धन्य हो प्रभु ..

आतंकवाद की घटना पिछले एक  महीने में किस रफ़्तार से बढ़ी है , यह भी देखने और समझने की बात है , उस पर तुर्रा यह है की सरकार  अपनी बेवकूफ़ी का प्रदर्शन घर में ही नहीं विदेश में भी जमकर कर रही है ...आपकी सेना ही सुरक्षित नहीं बाकी देश और जनता की सुरक्षा आप किस बूते करंगे , उसपर आपकी छाती है की सुकड़ती  तक नहीं ..बेशर्मी की हद यह है की गलती से सबक लेने के बजाय  दूसरो पर इल्ज़ाम डालना  ...यह सब पिछली  सरकार के 70 साल की गंदगी है ...

बहुत अच्छा भाई ...फिर पिछली सरकार के 70 साल का ही डिजिटल नेटवर्क है , रेल लाइन्स  है , बैंकिंग सिस्टम है , दूर संचार , मेट्रो सिस्टम , स्कूल , सड़क  , हॉस्पिटल , सरकारी वयवस्था , क़ानून , सेना , उसकी तोप , बन्दुक  , जहाज़   सब कुछ पिछली 70 साल की सरकार  का है ....फिर आप उसका इस्तमाल कैसे कर रहे है ...भाई बहुत खूब जो 70 साल में हुआ वह सब मुफ्त में और जो कुछ गलत हुआ वह उनकी गलती ....जब देश आजाद हुआ था , तब इस देश के पास क्या था और आज क्या है ?


इंडिया की इकॉनमी  1947 किस  दर्जे पर  थी और अब यह क्या ,कितनी बड़ी सेना थी आपकी 1947 में और उसके पास क्या था ? कितने घरों  में कार , टेलेफोन , टीवी था ?  जिस देश में एक  सुई तक ना बनती थी आज वह लड्कू विमान निर्यात करता है ...यह सब आपने दो साल में कर लिया ?  सरकार  और भक्तों की अक्ल और झूठ की कोई सीमा नहीं ...

बात करते है की हम फ़कीर है ....झोला लेकर निकले है ..भाई आप किसी टाटा बिरला की औलाद तो कल भी ना थे , आपके पास क्या था , आपने कौन सी डिग्री ऐसी ली थी की किसी कम्पनी में आप कोई डायरेक्टर होते  , या अपने कोई बिजनेस चला रखा था , फिर एक  फ़कीर के पास कुछ था खोने के लिए ? उसके पास जितनी अक्ल थी उसने लगा दी ....

आज की तारीख में डिजिटल इंडिया का सपना ऐसे ही है जैसे बिना पटरी के रेल दोडाना , पर क्या कर सकते है तुगलक की सरकार  है , ऊँचे और अच्छे विचार है , पर किसी प्रक्रिया  को लागू करने की अक्ल की कमी सब को ले डूबेगी ....

आप डिजिटल इकॉनमी की बात करते है ...किसके लिए ..90  करोड़  जनता यानी 70 % के पास  शाम तक होते होते एक  धेला  बचता नहीं , 1.5 % लोग  यानी 3 करोड़  लोग अपने पास एक  धेला रखते नहीं , क्योकि उन्हें अपने हाथ से खर्च करने की आदत नहीं है , उनके बिल तो उनके चमचे , असिस्टेंट या नौकर  या तो उनकी कंपनी के नाम या फिर सरकारी खाते से जाते है ..बची 15 से 20 % जनता जो मिडिल क्लास है ..सारा स्यापा उसे लेकर है ...भाई उनके लिए आपका आर्थिक ढांचा है , जो इतने बड़े बोझ को संभाल ले ...

क्रेडिट कार्ड कौन और किसे देगा , उसका कमीशन  किसे मिलेगा सिर्फ मल्टी  नेशनल को , उसकी क्रेडिट हिस्ट्री कौन और कैसे मैनेज होगी , साइबर क्राइम के केस में उपभोक्ता के हक़ के लिए क्या होगा ? है आपके पास इन सबके जवाब ?

उपभोक्ता क्यों क्रेडिट कार्ड से पेमेंट देकर 2.5 से 3% एक्स्ट्रा अपने ऊपर लोड ले , सेल टेक्स वसूलना सरकार की जिम्मेदारी है , उसमे उपभोक्ता क्यों सरकार के लिए अपनी कुर्बानी  दे , वैसे ही देश में पहले ही वेट , स्वच्छ भारत , सर्विस टैक्स के नाम पर  उसकी जेब काट ली जाती है ,एक  नया बोझ उसके जिम्मे और डाल दे ...यही वह इमानदार मिडिल क्लास है जो सबसे ज्यादा इनकम टैक्स देता है , अब उसकी बलि लेनी बाकी थी वह भी आपने अच्छी तरह से ले ली ....

एक  कुत्ता दुसरे कुत्ते का मांस  नहीं खाता यह सुना था पर देख लिया , जब सारे राजनितिक पार्टियाँ अपने चंदे के धन को सफ़ेद करने के लिए आज़ाद  छोड़ दी गई ...भाई शिकार तो सबको आम जनता रूपी मेमने का ही करना है ....

दूसरे  क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की पेमेंट में बुजुर्ग , कम पढ़े लिखे लोगो के साथ जो हेरा फेरी होगी उसका जिम्मेदार कौन होगा ?  क्या सरकार  इन सबकी जिम्मेदारी लेगी और उनकी सहूलियत और सुरक्षा के लिए उपाय करेगी ?.. हालत देखते हुए तो यह शेखचिल्ली के सपने से कम नहीं है ....आप  से रिज़र्व बैंक से नोटों की सप्लाई तो कंट्रोल होती नहीं ....किस बैंक में कितना पैसा पहुंचा और किसको कितना मिला इसका हिसाब तो आपको पता नहीं ....आप चले है आम जनता के हिसाब का ठेका रखने ....

उसपर सरकार न होकर एक  चिट फण्ड कम्पनी लगती है जो अपनी लुभावनी स्कीम से लोगों  को लुभा रही है , यह पहली सरकार है जो अपने ज़रूरी  काम धाम छोड़ कर आये दिन , नए नए बम्पर इनामों की घोषणा कर रही है ..अरे आप स्विस अकाउंट वालो को पकड़ो , जिन्होंने लोन नहीं दिया उसकी उगाही करो , दुकानदार सेल टैक्स क्यों नहीं देता , उसका कारण जानो और सख्ती करो , नोटों का वितरण ठीक से क्यों नहीं उसका हल खोजो ...नहीं ....

सरकार और मशीनरी  सड़क पर  मदारी का खेल दिखने वाला जमूरा बन गई है ...जो बड़ी शान से अपनी नयी नयी गुलाटियों यानी स्कीमों को ऐसे दिखा रही है जैसे कितने बड़े काम की हों ...

अभी तक एक  बेसिक सा एप्लीकेशन तो इंडिया में है नहीं जो बाहर  के मुल्कों में बहुत ही कॉमन है , की आप घर बैठे अपने सेल फोन से अपना चेक जमा कर ले ....साइबर सुरक्षा के नाम पर चीन के बने सेल फोन आम जनता के बीच’ भरे पड़े है जिनमे कितने सारे वायरस है , हार्डवेयर सुरक्षा जैसी चीज से सेल फोन वास्ता नहीं रखते ...इसका कुछ  पता भी है इस  तुगलकी सरकार के आला अफसरों को ....ऐसे में डिजिटल करेंसी के पीछे अंधी दौड़ कितनी वाज़िब  है ?


अगर चीन का  हैकिंग सिस्टम अपनी नीचता पर  आगया तो आपके डिजिटल करंसी और इकोनोमी की जो वॉट  लगेगी , उसका जरा भी इल्म  है इस तुगलकी सरकार को ....यह कौन सी अल्क्ल्मंदी है की आप बिना ब्रेक की गाडी हाई वे पर  लेकर निकल जाए ..अगर एक्सीडेंट हुआ तो बोल दे 70  साल की गन्दी थी ...

डिजिटल इंडिया का सपना ऐसे ही जैसे तुगलक का दौलताबाद को दिल्ली बनाने का सपना था , दौलताबाद को राजधानी बनाना  इतना गलत नहीं था , जितना तुगलक की जिद्द की सारे दिल्ली बाले दिल्ली छोड़ दौलताबाद जाए और दौलताबाद , दिल्ली जैसा हो जाये ..ऐसे ही सारे भारत को डिजिटल इकॉनमी  बनाने का सपना भी तुगलकी सपना है ...

अगर यह सिर्फ शहरों के लिए होता तो भी समझ आता , एक  बेचारे दूर  दराज के गाँव में जहां लोग , बिजली और पानी जैसी मूल भूत सुविधाओं  से महरूम है आप उन्हें प्लास्टिक  के कार्ड पकड़ाएंगें  ..बहुत खूब ..

गर्मियों में दिल्ली जैसे शहर में बिजली की क्या सिथिति है उस वक़्त आपके डिजिटल नेटवर्क का क्या होगा , उसका प्लान भी बना लेते , बारिश में आम टेलेफोन लाइन में क्या होता है उसका भी कुछ सोच लेते , तब क्रेडिट कार्ड मशीन कैसे परिणाम देगी ,इतनी सारी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन  इतने कम समय में , कौन सा नेटवर्क इतना बोझ ले पायेगा इसका भी कुछ ख़्याल  कर लेते ...अब यह सब कौन सोचे ....बिजली , पानी , सड़क  , पुलिस  ,स्कूल , हॉस्पिटल बने या न बने ...बस क्रेडिट कार्ड जरुर बने ....

सरकारी जिद्द ऐसे है बस हमें तो अपनी डिजिटल इकॉनमी  की ट्रेन दौड़ानी है  ....पटरी हम बाद में डाल लेंगें  ...

By 
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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