तेरी आँखों की ख़ामोशीयां जैसे करती है मुझसे कुछ सवाल
इनमे छुपा है कितना प्यार , फिर भी मांगते हो मुझसे इक़रार ...........
तेरे सूखते होठ जैसे देते है मेरी हर बात का जवाब
जब तक तुम इन्हें ना चूमोगे , यह कैसे होंगे लाज़वाब ..............
तेरे भरे हुए कपोलों की सुर्खिया , मुझे मांगती है यह
कैसा हिसाब
जब तक तुम इन्हें ना छुओगे , फिर यह कैसे रहेंगें सुर्ख लाल ..............
तेरी लहराती जुल्फों की लटाओं को मैं
क्या दूँ जवाब
जो बिखरी है मेरे इंतजार में , बनके एक महकता शबाब .............
तेरे चेहरे की मुस्कान जैसे करती एक अनजाना सा अहसान
मेरी वफ़ा को तोलने वाले , कभी तू भी तो हो मुझपर कुर्बान .............
तेरी आँखों का कजरारा , जिसने मुझे देखा और धिक्कारा
हे भटकने वाले मुसाफिर , क्यों
ढूंढता है तू कोई और सहारा ..............
तेरे माथे का लश्कारा , जैसे देता है मुझे कोई आवाज़
जिसकी फीकी पड़ती चमक , जैसे कहती है अब तो कर लो मेरा आगाज़ .......
By
Kapil Kumar
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