Tuesday 16 February 2016

अगर मैं होता ...?



मेरा तेरा क्या रिश्ता , इसलिए तूने तोला मुझे समझ के एक  फरिश्ता

शायद मैं अंजाना  था , इसलिए तेरे पास मेरे लिए अलग ही पैमाना था ....

बस एक  बार मुझे भी तोल लेती इन रिश्तो के पैमाने में

तो शायद होती हमारी मोहब्बत भी किसी मयखाने  में....



अगर मै तेरा पिता होता ...?

तो क्या तेरे मासूम बचपन को यूँ जाया किया होता

वक़्त से पहले तेरे फैले पंखो को ना नोचा होता

तेरी ऊँची होती उड़ान को गलत दिशा देकर यूँ ना रोका  होता

देता तुझे होंसला  जीवन में कुछ कर गुजरने का

तुझे बहला फुसला के यूँ ना गड्ढे  में धकेला होता.....



होता अगर मैं तेरा भाई...?

क्या होने देता अब तक तेरी जग हंसाई

तेरे बहते हर आंसू का कुछ तो मुझपर  कर्ज चढ़ा होता

अगर ना ला सकता एक  था राजकुमार तुझे ब्याहने  के लिए

कम से कम ना देता यह कड़वा घूंट  कभी तुझे पीने  के लिए

अपनी हीन भावना को तेरा घूँघट ना बनने देता ,

तेरी खूबियों से भी मैंने  कुछ जीवन मे सीखा होता.....



अगर मैं होता तेरी माता..?

क्या चुप रहता देख तुझे कोई रुलाता

चाहे जग हँसता या समाज कुछ कहता , मेरा मन बस तेरी ही बात कहता

तेरे दिल का मैं हाल समझता ,की तेरा दिल है किसमे रमता

तुझे नहीं थी चाहत इस दुनिया के दिखावे की

एक  छोटी सी हसरत थी बस प्रेम के धागे की ....



अगर मैं होता तेरी बहना..?

क्या होनी देती इतना घिनौना

नोच लेती वह सारे रिश्ते, जो भी तेरे मन को हैं हरते

जल जाती खुद ज्वाला  बन कर , पर तुझे देती कल का उजाला बनकर...



अगर मैं होता तेरा पति..?

क्या तुझको होती जरुरत इस भक्ति की

रखता तुझे पलकों पर  बिठाकर , संवारता तेरे सपनो को एक  साथी बनकर

क्या तेरे कभी यूँ आंसू  बहते , जो मुझसे कुछ भी ना कहते...



फिर भी इन रिश्तो में तुझे है असली प्रेम नजर आता

मेरे प्रेम की तूने रखी इन सबसे अलग एक  परिभाषा

इन सब रिश्तों को तूने बड़ी सहजता से निभाया

ना कभी किया शिकवा , ना कभी इनके सामने खुद को रुलाया

बस एक  बार मुझे भी इन रिश्तों  के तराजू में तोल ले

देख परख फिर चाहे तो रख या मुझे कड़वे बोल बोल ले ....



हर बार यही एक  आवाज आएगी ,

तूने समाज के बनाये रिश्तो के लिए अलग

मेरे लिए अलग दुनिया क्यों बनाई थी.....

काश  तूने मुझे भी एक  आम इंसान समझा होता

जिसके दिल में जलता प्रेम का दीया  देखा होता

शायद इस गुजरते पल को मैंने  भी तेरे साथ जिया होता....


 By
Kapil Kumar 

No comments:

Post a Comment