Monday 29 February 2016

तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....


सजती हो संवरती हो , अपनी फिगर पर भी ग़ौर रखती हो
जब जब दिल मचलता है तुम्हारा
आईने के सामने किसी मॉडल की तरह अकड़ती हो
फिर भी अपने को जोगन बोलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

बातें हज़ार  करती हो
दिल के आर पार भी उतरती हो
पूछो जब तुमसे, क्या फोन नंबर है तुम्हारा
तब बाते जल्दी से बदलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

दुनिया जहां की बातें है तुमको पता
किसका घर कब टुटा या कौन हो गया लापता
किसके घर के आस पास किसका है क्या फ़लसफ़ा 
पूछो तुमसे क्या है तुम्हारे घर का पता
तो तुरंत बाते दूसरी और पलटती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

दिल के अरमान अभी तक है जगे
जवानी के अभी पड़ाव पुरे भी नहीं पड़े
चुपके से नए नए फैशन के अंदाज खूब बदलती हो
दुनिया के सामने अपना असली रूप बदलती हो
सबके सामने अपने को बुढ़िया बाख़ूब कहती हो
पर दिल से अभी भी एक  बच्ची हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

तन्हा रातों में अभी भी, बिन जल मछली तड़पती हो
भीगी शामों में किसी साथी के साथ को तरसती हो
कोई तो पकडे कस के हाथ मेरा
ऐसा ख़्यालात से भी उलझती हो
फिर अपने इरादों  से खुद ही लड़ती हो
यह जीवन गुजरेगा बिना किसी सहारे के
यह वादा फिर खुद से करती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

अपनी गोल मोल बातों से दूसरे के दिल को खूब टटोलती हो
कोई पूछे अगर तुम्हारा काम भी
उसपे खीसे निपोर लेती हो
क्या है तुम्हारे दिल में उन्हें सिर्फ राज रखती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

तुम करती हो मोहब्बत पर इक़रार  नहीं करती हो
कहती हो उससे तू तो बस यूँही हो
फिर काहे उसकी फ़िक्र में अपना दिमाग ख़राब करती हो
डरती हो इस समाज से पर बाहर  से अकड़ती हो
अपने दिल को रोज एक  नया बहाना पेश करती हो
दुसरो से नहीं तुम खुद से ही सबसे  ज्यादा झूठ बोलती हो
तुम बहुत ही झूठ बोलती हो....

By
Kapil Kumar 

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