Friday, 26 February 2016

तेरा चेहरा....


तेरा उजला उजला चेहरा  , तेरी यह तीख़ी सी मुस्कान
मुझसे पूछती हो जैसे , चलो बताओ मेरा नाम
जब मैं देखता हूँ तेरी , इन झील सी आँखों में
ढूंढ़ता हूँ खुद को , कैसे डूबा मैं इन में .....

तेरे उभरे उभरे से कपोल, कहते है यह तब मुझसे
अरे तुम कब तक डूबे रहोगे, इन नशीली आँखों में
आ जाओ मेरे ऊपर  , अपने लवों से मुझे जकड़ के
तेरे उठते हुए कपोलों  को मेरे लव
जैसे ही करना चाहते है अपने बस में
मैं खो जाता हूँ उसमे , कहाँ छुपी है तेरी मुस्कान इन में......

तेरे होठों का मयखाना , जैसे देता है मुझे झिड़काना
अरे ओ प्यासे मुसाफ़िर  , कहीं  जल्दी जल्दी में मुझे ना भूल जाना
जब मैं अपने प्यासे होठों को लेकर , इनसे जो गुज़रा 
यूँ लगा जैसे आज , मैं अमृत के सागर में उतरा
इनमें  डूब जाने का भी अपना मज़ा 
एक  तरफ अमृत से महकती जिंदगी
तो दूसरी तरफ सागर में डूबने की सज़ा .....

तेरे माथे का लश्कारा , उसने मुझे देखा और ललकारा
क्या सारी प्यास सिर्फ , आँखों और होठों से ही बुझाओगे
अरे इतनी हड़बड़ी मत करो , फिर मेरे पास कब आओगे
देख कर उसका नजारा , मेरे होठों  ने उसे भी तारा
उसे चूमते हुए बोले , अरे तुम्हे हम कहाँ थे भूले.....

तेरे उखड़े उखड़े हुए केश , जैसे छुपा रहे तेरा कोई भेष
बोलते है मुझसे , बताओ कब छुओगे मुझे भी छम से
उनसे खेलने लगी मेरी उँगलियाँ , बनके उनकी सहेलियां
तेरी लटा तब शरमाकर , छिप जाती कहीं  यूँ अंदर
खोल लेता मैं भी उसका भेद , वह  जैसे कहती आओ मेरे कामदेव .....

By
Kapil Kumar 

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