Tuesday 16 February 2016

इंसानी फ़ितरत !! ....


इन्सान यानी मनुष्य भी एक  अजीब किस्म का जानवर है ... जो कहने को अपने आप को प्राणी जगत में सबसे श्रेष्ठ समझता है ... पर हकीक़त  में उसकी सोच और हरकतें एक  मामूली जानवर से भी बदतर होती है ....क्योंकि कहीं ना कहीं हर इन्सान में एक  जानवर भी छिपा होता है ..... जो वक़्त आने पर  अपना असर दिखाता है ....

अधिकतर जानवर अपने क्रिया कलापों को लेकर बेफिक्र रहते है ... पर इन्सान जो भी करता है उसके परिणाम को लेकर हमेशा संशय में डूबा रहता है ...देखने की बात यह है ....मनुष्य कोई भी फैसला लेने के लिए या तो “दिल “ या फिर “दिमाग” का इस्तमाल करता है ...अमूमन ....

“आम इन्सान अपने रिश्ते दिल से और अपना रोजमर्रा का कार्य दिमाग से करता है “ ......

देखने में यह सब बहुत वाजिब है पर हकीकत इसके विपरीत ...इसे ही समझने के लिए हम बाबा त्रिकालदर्शी के आश्रम पहुंचे .... जहां दीन - दुनिया के दुखी , सताए हुए नर और नारी दोनों ही मौजूद थे ...

बाबा के सामने एक  औरत परेशान और दुखी सी आई और बोली ... बाबा ..मेरा पति बहुत ही नीरस किस्म का इन्सान है ...ना कभी कोई रोमांस , ना हास -परिहास ....उसे मेरी खुशियों की कोई परवाह ही नहीं ..बस जो बोलो उतना ही काम करता है ...कभी भी मेरी खुशियों का ख्याल नहीं रखता ..की मैं मर रही हूँ या जी रही ..उसे कोई मतलब नहीं ऐसे इन्सान के साथ मैं कैसे रहूँ  ?

बाबा ने उसकी कहानी सुनी और पुछा ...क्या यह पहले भी ऐसा था या शादी के बाद बदल गया और तुमने इससे क्या सोचकर शादी की थी ? ....

औरत ने अपने पर  काबू पाया और बोली ..महाराज ..यह तो शुरू से ही ऐसा है ..पहले मुझे यह अच्छा लगता था ...की जो बोलो ..सब में हाँ कर देता था ..कभी बहस ही नहीं करता था ...पर घर गृहस्थी के लिए एक  समझदार इन्सान की जरुरत होती है ..वह  तो इसमें लगता है .... है ही नहीं....मैंने  कितनी कोशिस   की , समझाया , बुझाया ..पर ...यह तो पूरा गधा का गधा है...

बाबा ने अपने एक  सेवक को इशारा किया ..वह  थोड़ी देर बाद अपने साथ एक  गधा ले आया ...बाबा ने एक  साबुन की टिकिया , ब्रश और पानी देकर औरत से कहा ..चलो इस गधे को नहालो और देखो की यह घोडा बनता है की नहीं ?

बाबा की बात सुन औरत अचरज से बोली ..महाराज भला नहलाने से कभी कोई गधा , घोडा बनता है ..आप  मुझसे ऐसा मजाक क्यों करते है ?

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक  हुंकार भरी ..जब तुम इतना समझती हो ..की एक  गधा कभी घोडा नहीं बन सकता ...फिर तुम्हारे दुखी और परेशान  होने की वज़ह फिज़ूल  है ...तुमने गधे से शादी की है तो उसे गधा समझकर ही निभाओ ..उसे घोड़ा बनाने की कोशिस फिज़ूल  है ....

उस औरत से निपटने के बाद ..बाबा के सामने एक  आदमी रोता हुआ आया ..बाबा ..मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हो गया ... मेने जिस भाई को बचपन से पढाया लिखाया और कारोबार करवाया ..उसने ही मुझे आज मेरे कारोबार से बेदखल कर, उसपर  कब्ज़ा कर लिया ..मैं क्या करू ? ..

बाबा ने उसकी राम कहानी सुनी और पुछा ...क्या यह उसने पहली बार किया ? ..क्या आज से पहले उसने तुझसे झूठ बोला और तुझे धोखा नहीं दिया ?...

बाबा की बात सुन आदमी अपना सर खुजाने लगा और बोला ....

महाराज ...पहले पहले उसने छोटी मोटी हेराफेरी की ..मेने उसे नजरंदाज कर दिया ..सोचा छोटा है बड़ा होने पर  समझ जाएगा ...पर इस बार तो उसने सारी हदें  ही पार कर दी ....मैं तो बर्बाद हो गया ....

बाबा ने एक  सेवक को इशारा किया ..तो थोड़ी देर में एक  सपेरा बाबा के सामने हाजिर हुआ ...बाबा ने सपेरे से पुछा ...क्या तुम्हारे पास कोई पालतू सांप है ?

सपेरा बड़े जोश में एक  सांप दिखाते हुए बोला ..हाँ महारज है .... यह मेरा पूरा पालतू बनाया  हुआ है ...बाबा .... क्या यह सांप .... तुम्हे कभी डसता नहीं ? 

सपेरा बड़ी अकड से बोला ...अरे नहीं वह  तो मेरे इशारों  का गुलाम है ..उसकी मजाल ..वह  मुझे काट ले ..मैंने  तो उसे बचपन से पाला है और ऐसा कह सपेरे ने बड़ी अकड से सांप को टोकरी में से निकाल कर अपने गले में लटका लिया ....

बाबा ने उसकी तरफ देखा ..फिर आदमी की तरफ देखा और अचानक .... एक  पिन  सांप को छुवा दी ....अचानक हुए हमले से सांप बिलख गया और उसने एक फुंफकार  ली और सपेरे को काट लिया ....

सपेरा दर्द से बिलख पड़ा और बाबा से नाराज होता हुआ बोला ...अरे यह आपने क्या किया ... इसने तो मुझे डस लिया ..वह  तो अच्छा था ..मैंने  इसके ज़हर  के दांत निकाल लिए थे ..वरना तो आज ..मैं परलोक सिधार जाता ...

बाबा ने सपेरे को विदा किया और उस आदमी की तरफ मुखातिब हुए और बोले ....

तूने बचपन से ही सांप पाला ....फिर उसके काटने पर क्यों रोता है ?  यह तुझे भी पता था ..की तेरा भाई कितना निकम्मा है ..पर तूने सांप की तरह उसके ज़हर  को ना तो पहचाना और ना ही उसे वक़्त रहते निकाला ....जब वक़्त आने पर  उसने तुझे काटा तो तू सहन ना कर सका ....तू अपनी गलती और लापरवाही को सांप के गले मढ रहा है .....

अगर तूने अपने भाई को बचपन से ही अपने कारोबार , घर और पैसे से दूर रखा होता तो .... आज उसके धोखा देने पर  तुझे इतना नुकसान ना उठाना पड़ता  ...पर तब तो तू उसे अपने गले में उठाये , इस सपेरे की भांति घूम रहा था ...

जिस तरह सांप अपने काटने की फितरत नहीं छोड़ सकता और अपने ऊपर मुसीबत आने पर वह यह नहीं देखता की उसके सामने कौन है ..ऐसे ही घटिया इन्सान , मौका आने पर धोखा देने की आदत नहीं छोड़ सकता ...भले ही उसके सामने उसका कितना भी प्रिय क्यों ना हो ....

आदमी रुवांसा होकर बोला ....पर अब मैं क्या करू ? मेरा तो सब कुछ चला गया ...
बाबा  ने कहा ...जो सांप डस गया उसके पीछे भागने से कोई लाभ नहीं .... पहले सांप के काटे का इलाज करवा .... यानी अपने आपको दिल और दिमाग से मजबूत बना ....ताकि उसके ज़हर  यानी धोखे से जो दर्द तुझे हुआ है वह  दूर हो सके ... बस आगे ऐसे सांप को पालने से पहले , तुझे यह याद रखना होगा ...की सांप कभी भी डस सकता है ....यह उसकी फ़ितरत  है .....इसमें अपने आपको कोसने या रोने की जरुरत नहीं .....

उस आदमी के जाते ही एक  बुजुर्ग दम्पति ..बाबा के सामने रोने गाने लगे ..महारज ..हम तो कहीं के ना रहे ...जिस लाल को हमने खून पसीने की कमाई से पाला पोसा , वही आज हमें घर से बेघर करने पर तुला है ..हमें क्या करे और कहाँ जाए ?

बाबा ने उनकी राम कहानी सुनी और एक  सेवक को इशारा किया ...थोड़ी देर में वह एक  कुत्ते का पिल्ला ले आया ...बाबा ने   कुत्ते के पिल्लै ...को दम्पति के आगे रख दिया और बोले ...यह एक  भेडिये का बच्चा है ...जो देखने में बिलकुल कुत्ते के पिल्लै जैसा लगता है ....इसे ले जाओ और अपने यहां पालतू बना कर रख लो ...

बाबा की बात सुन बुजुर्ग दंपत्ति ..चौंक  पड़े और अचरज से बोले ....

महाराज क्यों मजाक करते हो .... भला भेडिये के बच्चे को भी कोई पालता है ? यह तो बड़ा होने पर हमें  ही  खा जाएगा ....

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक  रहस्यमयी मुस्कान ली और बोले ....तुम्हे कैसे पता यह बड़ा होने पर तुम्हे काटेगा ही ?.... इसपर  दोनों मियां बीवी एक  साथ बोले ....

यह तो भेडिये की फ़ितरत  है ..इसे कितना भी अच्छे से पालो ..एक  दिन यह तुम्हे काटेगा ही ...

बाबा बोले ..बस समझ लो तुमने वफादार कुत्ता नहीं एक  भेड़िया पाला था .... जिसने वक़्त आने पर तुम्हे काट लिया ...अब यह तुम्हारी नासमझी है या बेवकूफी की तुम इतने सालो में भी उसके रंग ढंग यानी उसकी नस्ल और व्यवहार  को समझ ना पाए ...बस आगे से उस भेडिये से सावधान रहना .....की ..वह  तुम्हारा कितना भी पालतू क्यों ना हो ..भूख लगने पर वह  काटेगा ही ..चाहे सामने  उसके पालने वाला क्यों ना हो ...

अभी बुजुर्ग दम्पति बाबा के सामने से गए थे ...की एक  खुबसूरत युवती रोती बिलखती बाबा के सामने आकर खडी हो गई और बोली ..महाराज ....मेरे ऊपर तो बड़ी विपदा आन पड़ी है .....

बाबा त्रिकालदर्शी ने उस स्त्री को देखा ...जो देखने में निहायत ही सुंदर और अमीर लगती थी ... उसपर  उसकी नफ़ासत  और नज़ाकत उसकी सुन्दरता में चार चाँद जोड़ रही थी ..... भला ऐसी अप्सरा को भी कोई पीड़ा हो सकती है ? ऐसा बाबा मन ही मन सोच रहे थे ....की युवती का करुण स्वर बाबा के कानों में पड़ा .....

बाबा .... मेरा पति मुझे धोखा देता है ..आये दिन दूसरी औरतो के पीछे पागल बना घूमता है ....क्या मैं सुन्दर नहीं हूँ ...उसे कैसे रास्ते पर लाऊँ  ......मैं क्या करूँ  ?

बाबा ने एक सेवक के कान में कुछ कहा और थोड़ी देर बाद सेवक एक  कुत्ते के साथ हाजिर हुआ ....बाबा ने एक  प्लेट में गोश्त और दूसरी में कुछ गंद रखवा दिया और कुत्ते को उनके पास लाने के लिए कहा .....कुत्ता दोनों प्लेटों  के नजदीक आया और पहले उसने गोश्त की पलेट को सुंघा और उसमे से गोश्त खा लिया ...फिर गंद की पलेट को सुंघा और उसे चाट कर छोड़ दिया .....

कुत्ते की यह हरकत देख बाबा जोर जोर से हंसने लगे ..फिर उन्होंने कुत्ते को वहां से ले जाने का इशारा कर दिया .....

युवती अचरज भरी नज़रों  से बाबा को देख रही थी ...उसके कुछ समझ ना आया ..की बाबा उसे क्या बतलाना और समझना चाहते है ...उसने बाबा त्रिकालदर्शी की तरफ प्रश्न  वाचक निगाहों से देखा ?

बाबा ने मुस्कराते  हुए कहा ..पगली इसमें ..न समझ में आने वाली क्या बात है ...तूने कुत्ते की फ़ितरत देखी  ..उसने पहले गोश्त देखा ..जो उसने खा लिया ..फिर उसने गंध देखा उसे सुंघा और चाट भी लिया ..जबकि कुत्ते का पेट भरा हुआ था ...यह उसकी फ़ितरत  ..की वह गोश्त और गंद को जानते हुए भी सूंघने और चाटने से नहीं रोक सकता ....

तूने एक  ऐसे आदमी के साथ घर बसाया है ..जिसकी फ़ितरत  कुत्ते की है ..उसके लिए गोश्त और गंध इक है ...वोह उन्हें सूंघेगा भी और चाटेगा भी ... तू क्या तेरी जगह दुनिया की कोई भी अप्सरा होती तेरा पति यही हरकत उसके साथ भी करता ....अब यह तुझपे है ..की तू ऐसे कुत्ते को पालना या उसके साथ रहना चाहे या ना .... पर इसमें तेरा कोई दोष नहीं ...

युवती सिसकती हुई वंहा से चली गई ..एक  आदमी बड़ी देर से यह नज़ारा देख रहा था ....उसने हिम्मत करके ..बाबा से कहा ..बाबा मुझे आपका ज्ञान समझ नहीं आया ...आपने किसी की कोई मदद नहीं की ..ना ही उन्हें कोई सलाह दी ....फिर यह सब समझने का क्या अर्थ ?

बाबा त्रिकालदर्शी ने एक हुंकार भरी और बोले ..प्रश्न  तो तुम्हारा अच्छा है ....पर एक बात बताओ ..तुम अपने छोटे बच्चे को पैरों पर चलना सिखाओगे या उसे जिन्दगी भर अपने ऊँगली पकड कर चलवाओगे?

आदमी बोला ...उसे पैरों पर चलना सिखायुंगा.. ताकि वह  बड़ा होने पर  , मेरे बिना भी खुद चल सके ....

बाबा ने कहा ..बस यही समझ लो मैंने  इन लोगो को इनके पैरो पर चलना सिखा दिया है .... किसी इन्सान की पहचान करके उसके साथ व्यवहार करने को ही मेरी इनके लिए मदद और सलाह समझो  ..

असल में हर इन्सान के अंदर एक  जानवर है ...बस हम उसे जानते बूझते हुए भी नजर अंदाज करते है और जब यही जानवर बाहर निकल आता  है ..तब हम हाय तौबा मचाते है ...

अजीब बात यह है ..की जानवर के साथ हम किसी तरह की हाय तौबा नहीं मचाते ..क्योकि उसके व्यवहार  को हम ,उसकी फ़ितरत  समझकर लेते है ...पर इन्सान के मामले में हम यह समझ लेते है की ..वह अपनी फ़ितरत  बदल लेगा ..अब क्या कभी सांप काटना या कुत्ता गंध सूंघना छोड़ सकता है ..नहीं ..हम इसे मान कर चलते है ...वह ऐसा ही करेगा ....

पर इन्सान की बारी आते ही हम अपना दिमाग बंद करके ..दिल के हाथो मजबूर होकर व्यवहार  करते है ...हम उसके अंदर बसे जानवर के अनुसार उससे व्यवहार  की अपेक्षा नहीं रखते ..अपितु उसके अंदर बसे जानवर को इन्सान समझ कर इन्सान जैसा व्यवहार करते  है यही हमारे दुखों और धोखों का  कारण है ...

सच तो यह है ...की....

“इंसानी रिश्ते दिल से नहीं दिमाग से निभाए जाते”  .....जैसे हम जानवरों के साथ करते है ...

पर हम यह सब कुछ समझते बुझते हुए भी वही गलती बार बार करते है जीवन भर इसी कशमकश में रहते है ..की ...

मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ ?  उसने ऐसा क्यों किया ..... जबकि इसमें दोष सामने वाला का है ही नहीं .... गलती हमारी है ..की हमने उस जानवर के व्यवहार  को सही परखा या समझा नहीं या फिर उसे बदलने की बेवकूफी की ....उसने तो वही किया ..जो उसके अंदर के जानवर की फितरत है .....

ऐसा कह बाबा त्रिकालदर्शी अपने आसन से उठ कर चले गए ....

By
Kapil Kumar 

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental”. Please do not copy any contents of the blog without author's permission. The Author will not be responsible for your deeds..

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