राज्य में चारो तरह बड़ा ही मनोरम द्रश्य था ।
चारो दिशाओ में दीपक की रौशनी में स्त्रियाँ चमकती दमकती लग रही थी और बड़ी ही बेसब्री से चाँद को निहार रही थी ।
राजन ने पूछा , मन्त्रिवर आज कौन सा पर्व है , जो यह स्त्रियाँ इतनी सज धज के आकाश को निहार रही है ।महाराजा आज का स्त्रियाँ विशेष व्रत है और यह स्त्रियाँ चाँद को देखने के लिए आकाश को निहार रही है ।
मंत्री और क्या क्या होता है इस पर्व में , महाराज ने पुछा ?
महाराज , आज के दिन विवाहित स्त्री अपने पति की मंगल आयु की कामना के लिए दिन भर निर्जल व्रत रखती है और अपने पत्नी धर्म का बड़ी निष्ठा से पालन करती है !
महाराज ......स्त्री का पत्नी धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है । मंत्री कपिल बोला ।
महाराज बोधिसत्व ने मन ही मन कुछ सोचा और बोले , मन्त्रिवर यह कहना अभी जल्दी होगी , की स्त्री का पति के प्रति प्रेम सबसे बड़ा पत्नी धर्म है ?
मंत्री कपिल ने कहा , महाराज छमा कीजिये ..... पर जिस देश की परम्परा और संस्कार में "सीता" और "सावित्री" जैसी महान नारियो की परम्परा है वंहा पर आप के शक की वजह मेरी समझ से बहार है ?
महाराज बोधिसत्व ने कहा मन्त्रिवर आपका कथन सत्य है..... पर इसे ही अंतिम समझना गलत होगा , वोह क्यों ..... राजन , मंत्री कपिल ने पुछा ?
वोह इसलिए की ,सावित्री ने जो किया वोह अपने को सुहागन रखने के लिए किया... उसमे उसका अपना निजी स्वार्थ था ।
पर महाराज ?......"सीता " ने तो निस्वार्थ पत्नी धर्म का पालन किया , मंत्री कपिल प्रतुतर में बोला ।
बोधिसत्व बोले ...... सीता ने पत्नी धर्म का पालन अपने संस्कार और परम्परा का निर्वाह करने के लिए किया ..... अगर वोह ऐसा न करती.... तो उस वक़्त का समाज ...उन्हें जीने नहीं देता?..... दुसरे, उन्हें पति के रूप में .."प्रभु राम " मिले थे !.....ऐसे में कोई भी स्त्री इतना बड़ा त्याग प्रभु राम के लिए बिना किसी हिचकिचाहट के करके अपने को धन्य समझती ....इसलिए उनका त्याग उल्लेखनीय अवश्य है पर अंतिम नहीं ।.......
तो फिर सबसे बड़ा धर्म क्या है?... मंत्री ने याचना और प्रशंवाचक भरी नजरो से बोधिसत्व की तरफ देखा । .....
मंत्री जी, कल सुबह ,आप हमारे साथ... भेष बदल कर राज भ्रमण पे जायेंगे "...जो आज्ञा कह, मंत्री ने... सुबह को अपना भेष बदल आने का वादा कर... वंहा से विदा ली ।
दोनों सुबह, इक सामान्य मुसाफिर का भेष धारण कर ,राज भ्रमण पर निकल पड़े ।
चलते चलते रास्ते में इक धार्मिक स्थल पड़ा ... दोनों धार्मिक स्थल में कुछ देर के लिए रुके .... वंहा पर उन्होंने देखा.....,इक तपस्वी , प्रभु तपस्या में इस तरह से लीन था .... की ...उसका शरीर सुख कर कांटा हो गया था .....फिर भी वोह, प्रभु की आस में बड़े तल्लीन भाव से मग्न और बड़े ही मनोयोग से तपस्या कर रहा था .......
महाराज,बड़ा ही अध्यात्मिक द्रश्य है यह तपस्वी प्रभु की तपस्या में लीन है मंत्री कपिल ने कहा ....... बोधिसत्व बोले ....मन्त्रिवर ,जरा मालूम कीजिये ! यह तपस्वी तपस्या क्या और क्यों कर रहा है?.....
मंत्री कपिल ने .....इधर उधर निगाह दोडाई तो.... इक भक्त जैसा मनुष्य दिखाई दिया ....मन्त्री ने .....उसके पास जाकर पूछा ।
हे ब्रह्म देव , छमा करे ..... क्या आप, हमें यह बताने का कस्ट करंगे , की यह पूजनीय तपस्वी देवता किसकी तपस्या में इतना लीन है ?
भक्त..... मंत्री कपिल से बोला ..... हे मुसाफिर ....., यह हमारे गुरूजी है ,.... इन्होने सात दिन का निर्जल उपवास रखा है....ये अपने धर्म का पालन पूरी निष्ठा से करते है और हर साल के इन सात दिन सिर्फ प्रभु को याद करते है बाह्य जगत से दूर रहते हैं |.....
इन दिनों इनकी साधना में विघ्न न हो , ....इसलिए ,हम धार्मिक स्थल के कपाट जनता के लिए बहुत थोड़े समय के लिए खोलते है , आप कृपया यंहा से शीध्र प्रस्थान करे ।
मंत्री ने.... उस भक्त का धन्यवाद किया और महाराज बोधिसत्व की तरफ मुखातिब होकर बोला..... महाराज.... अति उत्तम , अति पावन, ऐसा धर्म का पालन करने वाला दुर्लभ है ..इसक साधना रूपी धर्म ही उत्तम है ....
राजन बोधि.. मुस्कुराये और बोले , मन्त्रिवर यह कहना शीध्रता होगी , और ऐसा कह वंहा से निकल पड़े ।.....
थोड़ी दूर निकल, दोनों इक निर्जन स्थान पर पहुंचे , .....वंहा पर, तपती धुप की गर्मी में , इक सूखे खेत में , इक किसान.... बड़ी मेहनत से खेती का हल अपने कंधे से खिंच रहा था , वोह मेहनत से हांफ रहा था और उसका शरीर पसीनो से लथपथ था ।.....
वोह हल को खींचता और थोड़ी ही देर में थक कर बैठ जाता .... उसका शारीर सूख के कांटा हो चूका था । .....फिर भी वोह थोड़ी देर पश्चताप उठता और हल से खेत जोतना शुरू कर देता ,.... बड़ा ही ह्रदय विदारक द्रश्य था ......
मंत्री कपिल के मुंह से निकल पड़ा .... राजन.... यह किसान तो बहुत कठिन परिश्रम कर रहा है ,जिस गर्मी में मनुष्य तो क्या पशु –पक्षी भी... बाहर निकलने का साहस न दिखा सके.... ऐसे में यह किसान कितनी मेहनत से अपना खेत जोत रहा है ....जो इतनी गर्मी में , भरी धुप में , अपना खेत जोत रहा है !......इससे बड़ा तपस्वी और अपने धर्म का पालक कौन हो सकता है?..
महाराज बोधिसत्व.. ने कुछ नहीं कहा , और सिर्फ मुस्कुरा दिए!......
राजन बोधिसत्व.... किसान के पास गए और बोले.....हे धरती पुत्र ... तुम इतना कस्ट उठा कर.... इस बंजर भूमि से क्या लेना चाहते हो ?
किसान हांफता हुआ बोला .... हे सज्जन पुरुषो , मैं इस धरती पे ....अपना पसीना बहाकर... इसमें बीज बोना चाहता हूँ ।..... मैं यंहा.... पिछले 2 महीनो से हल चला रहा हूँ ....मुझे विश्वास है ,इक दिन यंहा मुझे लहराती हुई फसल मिलेगी !.....और ऐसा कह... किसान अपने खेत को फिर से जोतने लगा !....
मन्त्री कपिल ने..... राजन बोधिसत्व को देखा और बोला ,.... महारज बस भी कीजिये ,.... अब, इससे बड़ा...... अपने कर्तव्य का पालन करने वाला और कौन हो सकता है?......
इसका कर्तव्य रूपी धर्म तो सर्वोपरि है ।
राजन बोधिसत्व मुस्कुराये और बोले , मन्त्रिवर धीरज रखिये.... ऐसा कहना अभी शीध्रता होगी और ऐसा कह.... वंहा से आगे चल पड़े ।.....
मंत्री कपिल बड़े बुझे मन से राजन के साथ हो लिया..... आगे जाने पर ....इक द्रश्य देख दोनों चोंक उठे ,.... उन्होंने देखा.... इक आदमी इक पेड़ के सहारे लिपटा खड़ा है ... और मन ही मन कुछ बड बड़ा रहा है !....
मंत्री बोला , राजन लगता है कोई पागल है !.....
बोधिसत्व मुस्कुराये और बोले , मन्त्रिवर ......जाइये जाकर.....उसके बारे में पता करे और देखे वो कौन है ?......
जो आज्ञा कह.... मंत्री , उस पागल के बारे में जानने निकल पड़ा ।.....
जब थोड़ी देर बाद मंत्री कपिल वापस लोटा...... तो बहुत उदास , निराश और परेशान था , वो आकर चुप चाप महाराजा बोधिसत्व के पास खड़ा हो गया और राजन बोधिसत्व को टक टक्की लगा कर देखने लगा ।....
राजन बोधिसत्व बोले.... मन्त्रिवर आपको यह क्या हो गया ?
आपने उस पागल के बारे में पता नहीं किया ? मंत्री कपिल ने अपने आप को संभाला और बोला महाराज , बड़ी ही विचित्र घटना हुयी ! .....
क्या हुआ मंत्रीजी ?..... साफ़ साफ़ बातये ऐसे पहेली न बुझाये , राजन बोधिसत्व बोले ।
महाराज , वो पागल ,किसी युवती से प्रेम करता था और वो युवती भी उसे बहुत चाहती थी ,.... दोनों का प्रेम.... राधा कृष्ण की तरह पावन था ,.... इक दिन ,किसी नौका दुर्घटना में उस युवती की मृत्यु हो गयी ! .....उस दिन से ....यह युवक.... हर शाम... अपनी प्रेयसी से किये वादे के मुताबिक आता है और पेड़ को अपनी प्रेयसी समझ ...उससे आलिंगन कर , अपने प्रेम का इजहार करता है ।.....
पिछले 50 वर्षो से... लोग इसे देख रहे है ।...
पर मन्त्रिवर यह तो कोई 27/28 साल का नवयुवक लगता है .....फिर यह कैसे 50 सालो से यंहा आ रहा है?.... राजन बोधिसत्व बोले??
मंत्री कपिल ने इक गहरी साँस ली और बोला, महाराज , बड़ी ही विचित्र बात है , जब मैं उस नवयुवक के पास गया तो मेने देखा ?
क्या देखा मंत्री जी?... जल्दी बोलिए ... राजन बोधिसत्व उत्सुकता से बोले....
महाराज.... वो नवयुवक कोई और नहीं मैं ही हूँ.... और मेरी आत्मा... आज भी अपने प्रेयसी से किये हुए वादे को निभाने... रोज शाम, उस पेड़ के पास आती है !.....
महाराज यह क्या पहेली है?....., इसे आप ही सुलझाये , ऐसा कह, मंत्री कपिल सुबकने लगा .....
बोधित्सव बोले...... धीरज मन्त्रिवर .... पहले यह समझो धर्म क्या है ?
फिर उसका पालन पूरी निष्ठा से करो , .....सिर्फ समाज के बनाये हुए रीती रिवाज का पालन...... समाज के भय से करना ,धर्म नहीं है.... अपितु, धर्म से डरकर, की गयी झूटी और बनावटी आस्था है ।
धर्म ना तो बड़ा होता है न छोटा , ......उसे बड़ा- छोटा, ....वोह लोग बना देते है... जो धर्म की अंधी निष्ठा में डूब कर, कुछ हासिल करना चाहते है ।......
अपनी धार्मिक निष्ठा का पालन ....उसके दुरा उत्पन फल के लालच में करना... धर्म नहीं हो सकता ?.....
धर्म आपको सिर्फ..... मार्ग दिखा सकता है ,.... आपके नेक कर्म , सच्ची आस्था और समरपर्ण ही .....आपको सच्चा धार्मिक मनुष्य बनाते है ।......
किसी भी धर्म का पालन, बिना इन त्याग के ऐसा ही है.... जैसा आप दिखाए मार्ग पर तो चलते नहीं..... फिर भटक जाने के बाद ,उस मार्ग को दोष दे ?....
अब तुम ...खुद फैसल करो.....
इनमे कौन ......बिना किसी लालच के , पूरी निष्ठा से और अपने निस्वार्थ समरपर्ण से.... अपने धर्म का पालन कर रहा था?.... उसका ही धर्म .... बड़ा और दुसरे मनुष्यों के लिए अनुकरणीय है ।....
कोई भी धर्म ,किसी भी धर्म से बड़ा या छोटा नहीं होता!... उनके पालक ही....उसे बड़ा या छोटा बना देते है ।....
ऐसा कह बोधित्सव , मंत्री कपिल की तरफ मुस्कुरा दिए ।.....
By
Kapil Kumar
Note: यांह पर पगट विचार निजी है इसमें किसी कि भावना को आहात करने का इरादा नहीं है
“Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
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