Sunday 8 November 2015

दामाद तो गधा है(हास्य व्यंग !!)





सुन रहे हो ..हाँ ..बोलो मेरी मेरी माँ .....मेने बीवी की आवाज पे झल्लाते हुए कहा...उसे आँखे तर्रेरी और बोली ..क्या कहा ...मेने भी वक़्त की नजाकत समझ टोन बदलते हुए कहा ..हाँ सुन तो रहा हूँ ..बोल क्या कहना है ....उसके  इस बदले सुर ने मेरे दिमाग का अन्टेना पहले ही खड़ा कर दिया था ....
यह ललिता पवार की बेटी और बिंदु की बहन... मीना कुमारी के अवतार में.... भला मुझ जैसे बदनसीब संजीव कुमार पे इतनी मोहब्बत की चाशनी क्यों करके उड़ेले ..वोह भी बिना मतलब के? ..यह तो सोचने वाली बात है ....
हाँ तो सुन रहे हो ना ...बीवी ने थोड़ी दानवीरता का परिचय देते हुए अपनी कडवी जुबान से कुछ चाशनी उड़ेली ...मैं सोच रही हूँ की ...इस साल इंडिया जाने के बजाय मम्मी पापा को यंही ..बुला लेती हु ...मेने भी पिटते हुए विलेन की भांति थोडा सी हिम्मत बटोरी और दिखावे के लिए....इक मरा सा पंच लगाया ....अरे तू मुझसे पूछ रही है ...या मुझे बता रही है ? बीवी ने आँखे गोल गोल घुमाई और मुझे ऐसा घुरा ...जैसे…. 
किसी शेर के शिकार पे कोई  भूखा हाईना लार टपका दे और शेर लाल लाल आँखों से उसे घुर कर ही डरा दे ... 
तुम्हारे फायदे की बात करो ...तो ..भी उसे शक से देख्रते हो ....अरे उनको बुलाने का खर्चा होगा ....कुल 2000 डोलोर ....बच्चे को समर कैंप नहीं डालेंगे तो इतने पैसे तो उससे ही बच जायंगे  और वैसे भी क्या पता मम्मी पापा अपना टिकेट खुद ही खरीद ले ...तो वोह पैसे भी बच गए ना ...वाह क्या दिमाग पाया है ....उसने अपनी तारीफ़ ऐसे की जैसे...उसने अमेरिका की डूबती इकोनोमी को बचाने का मन्त्र खोज लिया हो ......पर ....
  मुझे तो आने वाले वक़्त में अपने घर के बजट पे... खर्च का ट्विस्टर दिखाई दे रहा था ...उनकी पिछली ट्रिप में मेरी घर की इकोनोमी जो बिगड़ी थी उसे पटरी पे आने में ही पूरा साल लग गया था ...तब तो यह प्रेगनेंसी की वजह से ज्यादा इधर उधर ना घूमी थी ...पर अब तो मस्त हटटी कट्टी  है ....अब इसे कौन रोकेगा ?
मुझे चुप देख ..उसने हिकारत भरी नजर से देखा और बोली...मुझे पता था ..तुम मेरे माँ बाप का नाम सुनते ही यूँ मुंह बनाओगे ...इसलिए मेने पहले ही उनको बोल दिया ..की इस गर्मी में आजाये और में उनका टिकेट बुक करा दूंगी ... उसकी इस बक झक ने मुझे पुराने घाव की यादा ताजा कर दी ...की लास्ट टाइम मेने इसकी माँ को बुलवाया था ....की प्रेगनेंसी में कुछ मदद हो जाएगी ..तो पता चला ... 
माँ के साथ बाप फ्री में आया ...मतलब सास के टिकट के साथ ससुरे का टिकट भी कटाना पड़ा ...अब इश्क मोहब्बत के ज़माने में भला दो बुजर्ग प्रेमियों को अलग करने का दुसाहस मेरे जैसा इंसान कैसे कर देता? .... 
 फिर सास के साथ ससुरा फ्री की स्कीम के तहत दोनों पधारे और कुछ ही देर में ... मेरे छोटे से अपार्टमेंट नुमा घर को धर्मशाला में बदलने में उन्हें रत्ती भर देर ना लगाई ....बाप बेटी दिन भर मुंगेरी लाल के हसींन सपने की तरह गप्पे ठोकते ....सास अपनी पति और बेटी की भक्ति का पूरा परिचय देती उनकी हाँ में हाँ मिलाती और तीनो बैठ ना जाने दिन भर क्या खाते और क्या गप्पे ठोकते?? .... 
 मैं बेचारा गरीब जब थका मंदा ऑफिस से घर पहुँचता ..तो सब घर में सोते मिलते ..मेरे आने से पहले सब अपने अपने खाने पीने के शौक पुरे करके आराम फरमाते ....मैं गरीब कुछ बचे कुचे ठंडे खाने से अपना काम चला लेता....  
उन डरावनी यादो को ताजा कर ...मेरा जिस्म ऊपर से निचे सिहर उठा ...मैं बोला पिछली बार तो यह बिस्तर पे थी ....तो घर धर्मशाला बना था  ..इस बार भली चंगी है तो क्या तमाशा होगा ?
 अब बकरे से तो पूछके उसे हलाल नहीं किया जाता ...उसे तो मौका , जरुरत और दिन देख कर अपने शौक के लिए हलाल कर लिया जाता है ..... 
 अब मैं कर भी क्या सकता था ....तरकश में जितने तीर थे वोह सब चलाये....की बड़े लड़के का इम्पोर्टेन्ट इयर है ..उसकी पढाई का हरजा होगा ....तेरे पिताजी दिन भर बैठे टीवी देखंगे और बच्चे भी उन्हें देख सारा समय टीवी में बर्बाद करेंगे ....तेरी माँ ...उल्टा सीधा खाना बना कर मेरा हाजमा ख़राब करेगी ...आदि आदि ...
पर उसे ना सुनना था ...न उसने सुना और उलटे मुझे उपदेश दे दिया ....की मम्मी पापा घर में होंगे तो बच्चे पढ़ लिख लेंगे ...उन्हें बहार कैंप में छोड़ कर आने की दिक्कत भी नहीं होगी और तुम्हे भी घर का खाना मिलेगा ... 
 पर सच यह था की ..उस इक वक़्त के खाना खाने की जो कीमत थी......उसे सिर्फ मुझ जैसा भुक्तभोगी ही समझ सकता था ....खेर कुछ दिन इस विषय पे चर्चा नहीं हुई तो मुझे लगा सुनामी की घोषणा मौसम विभाग से गलती से हो गई थी ...पर मुझे क्या पता था की ....सुनामी के साथ तो टोर्नेडो भी आ रहा था...
  इक दिन अपनी धुन में बैठा ...अपने अतीत के सपनो में खोया हुआ था ...की इक गुर्राने की आवाज आई....देखा तो धर्म पत्नी ...मुझे ऐसे घूर रही थी ...की इक बाघ किसी मेमने को घुर रहा हो ...मेने दबी हुई आवाज में पुछा ...अब क्या मुसीबत आन पड़ी?
 उसने डांटते हुए कहा ..अब तो तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड गई होगी .....अब तो तुम्हारा इक धेला भी खर्च ना होगा ....मेने सहमते हुए पुछा ....अब कौनसी लोटरी लग गई ..जिसके इतने गुणगान कर रही हो ?
  बीवी ने शशिकला की तरह हाथ नाचते हुए कहा ....मेरे मम्मी पापा ...अपना टिकेट खुद खरीद कर आ रहे है ....अब तो तुम्हारे पैसे बच गए ...अरे इतना भी ना हुआ ...की मैं अपने बूढ़े मम्मी पापा को ..इक बार अच्छे से घुमा फिर देती... मैं दबी हुई आवाज में बोला ..तेरे पिताजी अच्छा खासा कमाते है ...उस पैसे को जोड़कर क्या करेंगे ...वैसे भी हमें तो उनकी जयादाद में धेला मिलना नहीं है ....
 बस मेरा इतना कहना था ....की मेरे ऊपर तो दुसरे विश्व युध का हवाई हमला हो गया ....
  बस यही कसर बाकी थी ...की मेरे माँ बाप को मार कर... उनकी जायदाद पे कब्ज़ा कर लो ...खुद की कमाने की कुव्वत तो है नहीं ..बस दुसरे की रोटी पे नजर गडा लो ...ना जाने किस लालची से पला पड़ा ....
 मेने भी हारे हुए सिपाही की तरह मोर्चे पे शहीद होते हुए कहा ....अरे जब मेरी बहनों ने मेरी बाप की जयदादा में पूरा हिस्सा ले लिया ...तो तुझे अपने घर में क्यों नहीं ?बस इतना कहना था ....की मुझे मेरे घरवालो के साथ साथ खानदान को भी उल्लाह्नो, लानतो और तीखी बातो की श्रदांजली वीरगति प्राप्त सिपाही की भांति अच्छे तरीके से अर्पित की गई ....
  इन कटी जली बातो का श्राध सिर्फ उस दिन ही नहीं हुआ ...बल्कि तब तक चलता रहा जब तक हमारे पूजनीय सास ससुर ने हमारे घर में आकर बाकायदा अवतार नहीं ले लिया ....
 ससुरजी के रंग ढंग से तो मैं पहले ही वाफिक था ....की बुढाऊ ..इस उम्र में भी ऐसे ऐसे तीर चलाते है ...की अच्छे अच्छे लखीमल और करोरीमल कंजूस उनके सामने शर्मा जाए ...  
 जिस दिन उन महान विभूतियों के आने का दिन था ...उस दिन घर में वोह वोह पकवान बने ..जिनके नाम हमने बीवी के मुंह से सुने भर थे ....कूड़ा वंहा वंहा से ढूंड के निकाला गया ...की .... सफाई करने के उन तरीको को देख भर लेने से इनकम टैक्स वालो अपनी ट्रेंनिंग के तरीको में सुधर ले आते ...की कैसे दबा छुपा माल आसानी से ढूंडा जा सकता है .....
  एअरपोर्ट पे ..उन महान आत्माओ के दर्शन हुए ...उनकी झलक भर से पता चल गया ....इस बार शनि तो भारी है ही ...साथ में राहू और केतु की भी दशा कुछ ठीक नहीं है ....बड़े मियां ने बड़ी गर्म जोशी में हाथ मिलाया और सामान हमारे हवाले कर दिया ..की चल बेटा ...
अपनी गाडी में चढ़ा ले ..चल तेरी ट्रेनिंग अभी से शुरू ....सामान पोर्टर के हाथ से ले कर .....कार में रखा ..तो देखा पोर्टर ..पैसे के लिए खड़ा है ....बड़े मियां ने जेब में हाथ डाला और बोले ....अरे हमारे पास तो ट्रेवलर्स चेक है...उसे तो यह लेगा नहीं ...उनका इतना कहना भर था की .....
  बीवी ने हमें आँखे दिखाई और हमने अपने पर्स से 20$ का नोट निकाला और पोर्टर से पुछा कितना हुआ ?बड़े मियां फ्री का माल देख दानवीर करण बनके बोले ..अरे पूछना क्या है ..गरीब आदमी है ...पुरे के पुरे दे दो ....हमने इक आह भरी और मरे हुए हाथो से पोर्टर की तरह हाथ बढाया ही था ..की वोह भी ...शातिर चील की तरह हमारे हाथ से नोट झपट ले उदा और बड़े मियां को ढेर सा थैंक्यू बोल गया .....पैसे हमारे और थैंक्यू किसी और को .....वह क्या जमाना है ?? 
 बड़े मियां के ..हमारी धरती पे... पहले कदम रखते ही 20$ स्वाह हो गए ...अभी तो दिल्ली दूर थी ....हमें तो अंदाजा होने लगा था ...की आगे ना जाने क्या क्या स्वाह होने वाला था ? 
रास्ते में माँ –बाप -बेटी ....ना जाने कौन कौन से रिश्तेदारों की खोज खबर लेने लग गए और ..हमने इक कुशल ड्राईवर की तरह गाडी बिना किसी धचकी और झटके के घर के आगे लगा दी ..... घर में पहुच ..सबसे पहली बिजली हमरे ऊपर यह गिरी की ....तीनो कार से उतर आराम से घर के अन्दर घुस गए और सारा सामान ..हमें खिंच कर उनके कमरे में ले जाना पड़ा ..भाई वोह लोग ठहरे ..बुजुर्ग ..और दुसरे के पास गृह मंत्रालय ...उनसे भला क्या हिलता ? 
 खेर हमारी आजादी तो पहले ही नीलाम हो चुकी थी ..हमारा कमरा जिसमे हम  अपना ऑफिस बना के बैठे थे और कभी कभी रात में उसमे लैपटॉप पे मूवी देख लेते थे ....घुस्पेठियो के कब्जे में पहले ही जा चूका था...हम तो बस अपने हाथो अपने घर को लुटता देख भर रहे थे .....हमारी उत्सुकता इस बात में थी ...की अब सास ससुर ..अपने इकलोते दामाद को क्या देंगे ...शाम को वोह घडी भी आगई....जब उनके अनमोल खजाने की अटेची खुली ...
  उसमे इक से इक वाहियात चीजे निकली ..जिन्हें देख हमें समझ ना आया ..की हमारी सास ...अमेरिका अपने दामाद के पास ..आ रही थी या ..किसी गावं में कुछ दिन के लिए कैंप करने जा रही थी ....
 हमने बड़ी हिल हुजत करके ...बीवी को पटा कर कहा था ...की हमारे लिए....... हल्दीराम की या घसिटाराम की  मिठाई जरुर मंगवा दे ..बाकी हमें इंडिया से कुछ नहीं चाहिए ...पर हम भी नेता की वायदे पे और ससुर के डिब्बे पे अपने सपनो के महल खड़े कर रहे थे .... 
हाय री किस्मत ...इक मुडा तुड़ा सा मिठाई का डब्बा निकला ..जिसपे किसी भी ऐसे हलवाई का नाम ना था ..जिसे हम जानते हो ...हमारी प्रशंनवाचक नजरो को देख.... बड़े मियां सफेद झूट बोलते हुए बोले ...अरे कपिलजी ...बड़ी ही मशहूर दुकान है मुंबई की ...बस चलते चलते रास्ते में ले लिया ..मैं भी पूरा ढीट बनते हुए बोला ..आपको तो पता था ....कब आना है ..फिर चलते चलते की क्या जरुरत पड़ी?...तो सास बीच में टपककर बोली ....वोह क्या है ....हमने सोचा .....पहले जरुरी सामान भर ले... फिर देखेंगे ..की जगह है या नहीं?.. ..
  मैं भी ढीट बनते हुए बोला ..पर सामान की लिमिट तो इक आदमी की ७० पौंड की  है और आप लोगो का सामान तो सारा मिला कर भी ७० पौंड नहीं है .... तो ..बड़े मियां ने सफ़ेद झूट बोला ..आजकल फ्लाइट में लिमिट कम कर दी गई है .. 
अब इस धारदार तर्क के आगे मेने चुप रहना ही ठीक समझा ...की आगे कुछ बोलता ..की बीवी का टेप शुरू होगया ..जो पुरे दो दिन मेरे सर पे चला ..... 
की मैं कैसा  लालची हूँ , कितनी मीन  मेख निकालता हूँ , बड़े छोटे की शर्म नहीं है आदि आदि ...अब दामाद के पास सास-ससुर १० साल बाद 8000 माइल्स से आये और दामाद इक मिठाई की भी फरमाइश ना कर सके ???
  हमने तो सुना था था ...हिंदुस्तान में बेटी का बाप.. सारी जिन्दगी ..अपनी बेटी को तीज त्योहार पे ढेर सारी मिठाई , कपडे और ना जाने क्या क्या देता है ? 
 सास ससुर के आने से पहले हमारा... हर साल की तरह बीच पे जाने का प्रोग्राम फिक्स्ड था ..अब उन्हें भी अपने साथ ले जाने का मतलब होटल में इक एक्स्ट्रा रूम का खर्चा सर पे लेना था ...खेर उसे भी हमने हँसते हँसते ले लिया ....पर शराफ़त की हद तो तब हो जाती जब बाप बेटी और माँ तीनो मिल कर दिन भर बीच पर ना जाने कान्हा गायब हो जाते और हम उनके पीछे अपने बच्चो को पालने वाली आया बन रह जाते ....वोह तो अपनी हंशी ख़ुशी में बाजार घूमते, बीच वाक करते और खरीदारी करते ....हम उनके लाये बैग को देख सिर्फ खर्चे का अनुमान लगा कर अपने खून को जलाते ..... 
खेर २/३ दिन वंहा काटने के बाद ...जिस दिन चेक आउट था ..उस दिन फाइनल बिल देख मैं उछल पड़ा ....उसमे ना जाने क्या क्या खर्चे शामिल थे ...होटल का किराया और खाने की बात तो समझ आई पर ...पोर्न मूवी का बिल देख दिमाग ठनक गया ...मेने होटल वालो से बड़ी लड़ाई की ..की यह गलत चार्ज है ..पर होटल वालो ने पक्के सबूत मेरे सामने कर दिए ...बोले ..यह काफी देर देखि गई है ..किसी गलत चैनेल लगाने का नतीजा नहीं है ...मेने भी सोचा जरुर किसी ने गलती की है ...इसलिए मेने बुढाऊ से पुछा की ..कंही आपने तो गलती से चैनल नहीं लगा लिया ?पहले तो उसने साफ़ मन कर दिया ..पर होटल स्टाफ के समय बताने पे उन्होंने धीरे से कबूल किया की ..उन्होंने गलती से चैनेल लगाया था...पर थोड़ी देर देखने के बाद बंद कर दिया था ...
 अब मै क्या बोलता ..अपनी बात को गिरता देख बुढाऊ ने अपना पासा फैंका ...और शान मारते हुए बोले ..हाँ हाँ कितने का खर्चा हुआ ..वोह हम देंगे ..... 
 मेने बात को वन्ही रफा दफा कर बिल पे कर दिया ..और सोचने लगा ..जो इंसान तुम्हे यंहा तक लेकर आया , होटल में ठराया , खाने पिने का खर्चा उठाया ..उसे तो तुमने शेयर करने की बात इक बार भी ना की ...पर यह २०/३० $ बड़ी हिम्मत से खर्च करने की बात कर रहे हो .... 
खेर इस सावन ने आने वाले मौसम का संदेसा दे दिया था ....की इस बार खर्चे की बारिश अच्छी होने वाली थी….
 सास ससुर को बीच घुमा फिरा कर वापस घर आ गया और अपने रोजाना के काम धंधो में बीजी हो गया ...की ...इक दिन घर आया तो देखा सब नदारद ...बड़ी देर इतंजार किया ...बीवी को फोन मिलाया पर उसे तो कसम पैदा करने वाली की कभी अपने फोन को उठा भी ले ....रात के करीब सब हँसते खिलखिलाते घर में घुसे .... मैं जला भुना बैठा था ..की त्रिमूर्ति (सास, ससुरा, बीवी ) बोली अरे आपने खाना नहीं खाया ..हम तो बहार से खा कर आ रहे है ...अब अपने सर के बाल नोचने के सिवा मै क्या करता ....खेर इक बार इस नजराने की शुरुवात क्या हुई ...अब हर दुसरे तीसरे दिन का फ़साना बन गया .... 
बड़े लड़के का महत्वपूर्ण इयर था ..कन्हा रोज उसके साथ थोड़ी बहुत मगज माजी करके पढ़ा लिखा लेता था ...उसे भी पूरी आजादी थी ..उसकी माँ अपने माँ बाप की सेवा में और बाप और काम धंधो में बीजी था ..वोह भी छुट्टे सांड की तरह अपना महत्वपूर्ण समय बर्बाद करने लगा ....मैं इन लोगो के रोज के राशन पानी और फरमाइशो को ऑफिस से आकर पूरा करने में लगा रहता ...सोचता की वीक एंड पे आराम करूंगा तो ..वंहा पहले से कंही घूमने फिरने का फरमान जारी हो जाता ... 
 मतलब वीक एंड के सत्यानाश के साथ खर्चा और ड्राइवरी फ्री....हर हफ्ते कभी न्यू यॉर्क तो... कभी राजधानी  ..तो कभी पहाड़ तो कभी गुफा तो कभी कंही तो कभी कंही ......बस यह सिलसिला हर हफ्ते चलता ....मतलब की पांच दिन ऑफिस में खटो...शाम को कभी दूध , कभी ताज़ी सब्जी तो कभी कुछ लाकर दो  और शनि और रवि कंही घुमाने ले जाओ ....इक दिन मेने बीवी से कह दिया की ..इस वीक एंड मैं कंही नहीं जाऊँगा ...कुछ तो आराम कर लू ..बस इतना कहना था की ..वोह मेरे सर पे राशन पानी लेकर चढ़ गई ...मेरे मम्मी पापा ..अपना टिकेट खुद खरीद के आये है ..क्या तुम उन्हें घुमा फिर भी नहीं सकते ...बूढ़े-बुढिया भी अपना टेढ़ा मुंह करके दबी हुई आवाज में चिंगारी देते हुए बोले..अरे रहने दे बेटी..जब इसका मन ही नहीं तो क्या फायदा घुमने फिरने का ..अब बुरे मन से ले जायेगा तो क्या खाक मजा आएगा ??
  
हमने बेकार ही यंहा आने में अपने पैसे बर्बाद किये?? उनका इतना कहना भर था की ...बस उसके बाद जो सुनामी आया... उसमे मैं तो क्या बड़े से बड़ा घाघ भी डूब जाता !!.... 
मैं बार बार यही सोच रहा था ...मैं कितनी बार अपनी ससुराल गया वंहा तो ..इन्होने मुझे कंही ना घुमाया ना फिराया ....हर बार यही ड्रामा होता ...ओह ..मैं तो बहुत बीजी हूँ ....इक बार साले के पास गया था ..उसके पास भी जीजा के लिए टाइम ना था ?
  क्या विदेश में सिर्फ हम लोग खाली है ...जो इंडिया से आने वाले को एअरपोर्ट से लेकर आये ..अपने पैसे से खिलाये पिलाये ...फिर अपनी छुट्टी लेकर उसे घुमाये ..उसके बाद उन्हें महंगे महंगे गिफ्ट्स भी ख़रीदे और फिर उन्हें सम्मानजनक वापस एअरपोर्ट छोड़ कर भी आये! ... 
हमें तो कोई साला एअरपोर्ट पिक करने भी नहीं आता ..पर क्या फायदा यह सब कहने का ..जब अपना सिक्का ही खोटा हो ..तो दुसरे को क्या दोष देना ?
  कुछ दिन इस तरह रगड़ते रगड़ते बीते ...की इक दिन बीवी बोली ..आज पापाजी ..को बड़े वाले शोपिंग माल ले जाओ ..जन्हा चीजे थोक के भाव मिलती है ...इन्हें इंडिया के लिए शौपिंग करनी है और बड़े शान में बोली पापजी अपन खरीददारी  खुद करेंगे तुम्हे दुबला होने की जरुरत नहीं है ... 
मेने वंहा जाने से पहले बुढाऊ की लिस्ट पे नजर डाली तो देख चोंक पड़ा ..ऐसी ऐसी ब्रांडेड चीजो के नाम थे ...जो हम लोग भी अपने लिए ना खरीदते थे ....
 मेने लिस्ट देख हिमत जुटाते हुए कहा ...यह तो काफी सामान है ...तो बुढाऊ ताव खाते हुए बोले ..अरे हमारे पास ५०० $ है ...मेने उनकी लिस्ट ..फिर त्रिमूर्ति को देखा ...जो मुझे बड़े ही हिकारत से देख रही थी ..मैं हिम्मत करते हुए बोला पर यह तो करीब २०००$ के करीब का खर्चा है ....  
इसपे बीवी ने अपनी आँखे तरेरी और  बोली ...तो क्या हुआ ..... इक तो यह लोग अपना टिकेट खुद खरीद कर आये है ..तुम इतना भी नहीं कर सकते... मेरा भी कुछ हक़ है की नहीं ....अपने माँ बाप को कुछ दे सकू और अब मेरी हालत बकरीद वाले बकरे की हो गई ...जिसे हर हाल में काटना ही था ....
  बड़े मियां ने भी अपनी हसरत पूरी करके अच्छी शोपिंग की ...उनके सामन को देख मैं सोच रहा था की ...ये इतना सारा सामन कैसे ले कर जायंगे ?
 घर पहुचने पे ..मेने सामन रखते हुए पुछा ..अरे आप लोग तो बड़ी मुश्किल से अपना सामन लेकर आये थे ..अब इतना सारा सामन कैसे लेकर जाओगे ...तो बड़े मियां तपाक से बोले अरे कपिलजी आपने ही तो कहा था ....की लिमिट ज्यादा की  है और  हम लोग लिमिट से बहुत कम सामान लेकर आए थे...अब हमें तो इन सबका ज्यादा ध्यान नहीं रहता .... 
 उनकी यह दलील सुन ..मैं भी खून का घूंट पीकर रह गया ...उनके कमरे में सामन रख बहार जा ही रहा था ..की इक फुसफुसाती आवाज से कदम ठिठक गए ....सास ..ससुरे से पूछ रही थी ..अरे इतना सामान कैसे खरीद लाये और इसे कैसे पैक करोगे ..हमारे पास तो इतना बड़ा सूटकेस भी नहीं है ...तो ससुरे के धीमे से फुसफुसाने  की आवाज आये ... 
अजी  चिंता क्यों करती हो ...सारा काम बड़े मजे में हो रहा है और आगे भी होगा ..तो सास ने पुछा कैसे ..तो ससुर  ने हँसते हुए कहा .... 
अपना ...“दामाद तो गधा है “ और ऐसा कह दोनों ठहाके मार कर हंसने  लगे  और मैं अपना सर झुकाए वंहा से चला आया ....  
ना जाने कितने ही लोगो की  दास्तान  सुनी और देखि है ....की इक NRI जब इंडिया आता है ...तो सबकी यही उम्मीद होती है .. 
आये हो तो हमारे लिए क्या लाये हो ? तुम तो छुट्टी लेकर घुमने आये हो तो खुद घुमो फिरो... हम सब तो बीजी है... हाँ शाम को तुम्हारे खर्चे से होटल में खाना जरुर खा पी सकते है ....
 और जब कोई इंडिया से विदेश आता है ..तब उसकी यही मांग होती है ..हमें बुलाया है तो क्या दोगे और हमें कंहा कंहा घुमाने ले जाओगे? .... 
सच में सिर्फ दामाद ही नहीं हर NRI “गधा” होता है ...जो देश और रिश्तो के प्रेम के नाम पर अपनों और परायो दोनों से अपने ही देश और विदेश में छला जाता है ... 
क्योकि विदेश में तो पैसा पेड़ो पे लगता है ..इसलिए तो NRI दामाद गधा होता है!! ....
             

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”

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