बात उस वक़्त की है जब हम सब लोग अपने अपने जीवन में सेट हो चुके थे या यूँ कहे की सब पढाई लिखाई के बाद नौकरी पेशे में लग चुके थे , उन दिनों आए दिन किसी ना किसी की शादी के चर्चे होते .... उन्ही दिनों मेरे इक हम उम्र पडुसी दोस्त संजय की शादी तय हुई थी ...
लड़की देखने में बहुत ही सुन्दर थी संजय दिन रात उसके साथ बिस्तर पे होने के सपने देखता रहता और हम लोगो के सामने उसकी सुन्दरता और सेक्स अपील का खुल्म खुल्ला धिन्डोरा पीटता ...की शादी के बाद उसकी कैसे “बल्ले बल्ले होगी” ....
संजय की ही देखा देखि, उसके ही इक मित्र भुवन ने ,उसके सपनो से प्रेरणा लेकर अपने होने वाली बीवी का मापदंड बना लिया ...की उसकी जीवन संगनी में क्या क्या होना चाहिए ?....
इक दिन मैं और संजय बैठे हुए किसी बात पे चर्चा कर रहे थे ...की लोग खुद, कैसे , शादी से पहले, अपनी होने वाली बीवी का मजाक दोस्तों में उड़ाते है और शादी के बाद ,जब वही दोस्त बीवी के बारे में कुछ बोल देते है तो दोस्ती में तलवारे खिंच जाती है ...
अभी चर्चा चल ही रही थी की भुवन का आगमन हुआ और आते ही वोह बोला ... अरे मेने लड़की पसंद का ली और शादी की डेट भी फिक्स्ड कर दी है ...हम दोनों ने आश्चर्य से पुछा अरे ..तेरी लिस्ट तो बड़ी लम्बी चोडी थी ...की लड़की ऐसी हो वैसी हो ..फिर इतनी जल्दी बात कैसे बन गई ?.... उसने इस सवाल का जो जवाब दिया ....
उसने मेरा माथा ठनका दिया और मेरे सामने इक ऐसा सवाल खड़ा कर दिया जिसका जवाब मैं आज तक ढूंड रहा हूँ ?
उसने छुटते ही कहा अरे लड़की तस्वीर में देखि थी कद काठी का तो पहले से ही पता था .... बाकी दूसरी चीजे माँ बाप ने देखनी थी वोह उनकी समस्या ....
मेरे काम की तो बस इक चीज थी ... मेने तो लड़की के “वोह” देखे और देखते ही मेने उसे हाँ कर दी ....बस पूछो नहीं ...की ... सोच कर ही मजा आगया ...
उसकी बात सुन मैं और संजय अभी हंसने ही वाले थे की मेरे मुह से निकल पड़ा ...
“अबे तू अपनी बीवी पसंद करने गया था या किसी वेश्या को लेने” ....
मेरी बात सुनने में बड़ी कडवी थी पर शादी के जूनून और दोस्तों में शादी से पहले होने वाली इन बेतुकी चर्चो में यह बात इतनी कडवी ना थी ..उसने हँसते हुए कहा ....
“अरे यार जिस काम के लिए शादी कर रहा हूँ जब उसमे ही दिल ना रमे तो शादी करने का क्या फ़ायदा ?”
और फिर संजीदा होता हुआ बोला ... भाई तमीज से .. वोह तुम्हारी होने वाली भाभी है ..हम सबने भी बड़ी बेशर्मी से हँसते हुए कहा ...अबे होने वाली है ..अभी हुई नहीं है और ऐसा कह सबने अपने अपने खींसे निपोर दिए ....
बात शायद यंही ख़त्म हो जाती ...पर उसके जाने के बाद मैं.... समाज में होने वाली अरेंज्ड शादी के फलसफे के बारे में सोचने लगा ...की हमारा समाज क्या , क्यों और कैसे कर रहा है ?
तब मुझे याद आया की कॉलेज में हम सब सहपाठी लड़के और लड़कियां अक्सर इस विषय पर बहुत बहस करते थे ...की शादी लव मैरिज हो या अरेंज्ड ? सबके अपने अपने तर्क होते थे की कौनसी शादी ज्यादा टिकाऊ होती है और सफल .....
पर उस वक़्त हम में से किसी ने भी शायद अरेंज्ड शादी का यह पहलु सोचा भी हो ...पर जैसे जैसे मेने अपने घर , रिश्तेदार और अडूस पडूस में होने वाली अरेंज्ड शादी को करीब से देखना शुरू किया तो ...मुझे उनके तय होने , लड़की के दिखाई जाने और कुछ रस्मो ने ऐसा झिंझोड़ा ..की मुझे लगने लगा ...की सभ्यता की दौड़ में हम कितने पिछड़ चुके है और जाने अनजाने ऐसे खेल में लगे हुए है जिसके बारे में अगर गंभीरता से सोचा जाए तो ...वोह कुछ चुभने वाले सवाल करेगा ...
आप में से कुछ लोग मेरी इन बातो को माने और शायद कुछ उसके विरोध में अपने दावे करे ..पर जो हकीकत मैं आगे लिखने जा रहा हूँ उनसे कोई भी मुह नहीं मोड़ सकता ...
यह हकीकत हमारे उजले समाज की वोह कालिख है जिसे हम लोग , हर दिन अपने मुह पे हंसी ख़ुशी मलते है .... मैं यंहा अरेंज्ड या लोव मैरिज के पक्ष या विपक्ष में कुछ नहीं कह रहा ..बस अरेंज्ड मैरिज के कुछ अजीबो गरीब तथ्य लिख रहा हूँ ...
सबसे पहले बात करते है ....
१.लड़की देखने की रस्म .....
अब शादी होनी है तो लड़की भी देखनी है ..लड़की देखने और दिखाने की रस्म जितनी वाहियात और बेवकूफाना है ..उसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है ...लड़की देखने कभी घर के कुछ लोग तो कभी पूरा खानदान लड़की के घर पहुँच जाता है ....
जैसे किसी बकरी को क़ुरबानी के लिए खरीदने जा रहे हो ....वोह देखने में कैसी है ..क्या क्या कामकाज जानती है आदि आदि ...
उससे भी बड़ी फजीहत की बात यह है .... लड़की के घर वाले, लड़की को ऐसे सजाते है और निर्देश देते है जैसे वोह कोई बाजार में बिकाऊ वस्तु हो जिसका मूल्याकन होना है और उसे अपने ग्राहक को पूरी शिद्दत से प्रसन्न करना है ....जी हमारी लडकी तो यह कर लेती है वोह कर लेती है ...
उधर लड़के वाले ऐसे बाते करते है जैसे किसी चीज को खरीदने से पहले उसकी वारंटी और फीचर देखे जा रहे हो .... अजी हमारा लड़का तो लड़की में यह चाहवे है वोह चाहवे है ...देखने समझने की बात है ... जैसे किसी टीवी , फ्रीज़ , कार या बाइक को खरीदने जा रहे है और सेल्समेन से उसके फीचर डिस्कस किये जा रहे है ...
घबराई और शरमाई हुई लड़की के दिल और दिमाग में क्या तूफ़ान है उससे किसी को कोई मतलब नहीं, सब अपनी अपनी रामकहानी में मस्त ....
बेचने वाला यानी लड़की के घर वाले अपनी जिम्मेदारी से ,ऐसे पिछा छुड़ाना चाहते है जैसे कोई अपनी पुराणी कार किसी के गले मढ़ना चाहता हो और लड़के वाले यानी खरीदार ऐसे देखता है जैसे वोह खरीदने से पहले सारी चीजो को अच्छे से देख और परख ले ....अब यह रिश्ता हो रहा है या सौदा यह खोज का विषय है ....
उसपे लड़का लड़की को ऐसे निहारता है जैसे कसाई बकरे के अंदर गोस्त का अनुमान लगता है ....
यह तो हुई किसी लड़की के घर देखकर आने की बात ... मुझे सबसे ज्यादा ख़ुदक उन माँ बाप पे आती है ..जो अपनी लड़की को दिखाने के लिए उसे खुद अपने साथ लेकर किसी होटल या मंदिर में पहुँच जाते है ....अब दुनिया भर के लोग वंहा आ जा रहे है और आप अपनी लड़की की नुमाइश खुल्मखुल्ला लगा रहे है .... “सलाम आपके संस्कारो और तहजीब को”....
आपकी लड़की कोई प्रॉपर्टी है जिसे दिखाने के लिए आपने पार्टी को साईट पे बुलाया है ?...
इक बार तो हमारे किसी मित्र की मौसी ने लड़की की चुनरी को बाकायदा हटा कर पूरा मुआयना किया ...की लड़की “ खाते पीते घर की है भी की नहीं ?“ ..... मैं तो यही सोचता था ...की सिर्फ लडको की आँखों में एक्स रे होता है ...पर मेरे अनुभव और किस्से तो यही कहते है ...की कुछ औरते तो आदमियों से भी बड़ी “बेशर्म” होती है .....वोह क्या ना पूछ ले और क्या ना कह दे और क्या करवा ले ....वोह कम ही है .....
अब ऐसे ड्रामे में क्या तो लड़की के और क्या लड़के के आचार विचार का आदान प्रदान होता है ...यह भी खोज का इक विषय है ?
२.सुहागरात .....
शादी हुई है तो निश्चित है सुहागरात भी होगी ...अब यह कोई किसे समझाए ....विवाह करते वक़्त , बाते आपने सात जन्म का साथ निभाने वाली की है .....जिसमे ना जाने कितने कसमे वादे खिलवाये गए ....” जन्मो जन्मो का बंधन बताया गया “आदि आदि ....
हकीकत में लड़का लड़की इक दुसरे को ना तो जानते है और ना ही समझते है ...बस लेकर अगले दिन दोनों को छोड़ दिया जाता है इक समुन्द्र में “जाओ जाकर अपनी किश्ती किनारे ले आओ” .....अब दो अनाड़ी जिन्हें इक दुसरे के ना तो वयवहार का पता है ...ना ही भावना का ..बस लग जाते है अपने जिस्म की भूख को पूरा करने ...इसमें प्रेम और सम्मान कंहा है ?”
सच कहू तो सुहागरात से ज्यादा बेशर्मी की कोई चीज हमारे समाज में नहीं है ...कितनी बेशर्मी से इक युवा दम्पति को आप कमरे में भेज देते है ..जो इक दुसरे से अच्छी तरह वाफिक नहीं है ....क्या करने ..सिर्फ सेक्स का खेल करने ..इससे ज्यादा कुछ नहीं ....
उसपे शादी के दिन आए रिश्तेदार और भरा पूरा परिवार ..... कोई इक बार यह भी नहीं सोचना चाहता की दोनों की मानसिक हालत कैसी होगी ? दोनों अगले दिन कैसे अपने परिवार का सामना करेंगे ....क्या लड़का या नववधु अगले दिन अपनी नजरे घर वालो से मिला सकेगा ?.....
किसी किसी समाज में तो सुहागरात के बाद , बाकायदा चादर दिखाई की रस्म होती है , अब इससे ज्यादा जलील और अहमक रस्म हो सकती है भला ?
जो लम्हे किसी नव दम्पति के मधुर और व्यक्तिगत होने चाहिए ...वोह महज इक मजाक का विषय बनकर रह जाते है और लड़की जिसे ..जिस इन्सान के साथ जिन्दगी बितानी है ....
उसे, उस इन्सान के मन को समझने से पहले उसका शरीर समझना पड़ता है .... दिल की केमिस्ट्री का पता भले सारी उम्र ना चले ....पर शरीर का फिजिक्स जरुर रटा दी जाता है ....
ऐसी जिस्मानी शुरुवात , क्या किसी प्रेम से भरे रिश्ते की हो सकती है ? जब किसी रिश्ते की बुनियाद ही सेक्स पे खड़ी की गई है ...फिर उसमे भावनाओ का स्थान कंहा और कैसे होगा ?... ”आज के समाज में आदमी, औरत को भीगने की चीज समझता है और औरत भी इसे अपना नसीब समझ अपने ग्रस्थ जीवन की गाडी को जैसे तैसे खींचने लग जाती है” .....
बाते हम अपनी संस्कृति , सभ्यता और बेद पुराणों की करते है , जिन देवी देवताओ की हम दिन रात अर्चना करते है , उनके आगे शीश झुकाते है ...क्या उनमे से किसी का विवाह ..आज के समाज में निभाए जाने वाले तरीके से हुआ था? ...
जिस प्राचीन सभ्यता की हम दिन रात दुहाई देते है ..उसमे नारी को अपना वर खुद चुनने का अधिकार था ....वंहा औरत कोई भेड या बकरी ना थी ..जिसे अपनी सुविधा के अनुसार किसी के हवाले कर दिया जाता था ....
जब किसी रिश्ते में ना तो प्रेम होता है और ना ही सम्मान ...फिर आप ऐसी खोखली बुनियाद से.... ऐसे किसी समाज की कल्पना कैसे कर सकते है ..जिसमे औरत को आदमी के बराबर सम्मान मिल सकता हो ....
फिर ऐसे में इक सभ्य समाज की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती ??.....
By
Kapil Kumar
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