आज हमारी कॉलोनी की दिवाली पार्टी थी ....पार्टी में मैं इक बुजुर्ग श्री अग्रवाल जी के साथ बैठा किसी विषय पे बात कर रहा था ..की हमारा विषय भारत में बढती महंगाई का हो गया ...वोह बोले आज कल खाने पिने कि चीजो के दाम बहुत बढ़ गए है ....मैं बोला ..खाने पिने के क्या इंडिया में तो हर चीज के दाम बेहताशा बढे है ....वोह बोले हाँ यह भी सही है ....मैं फिर बोला समस्या यह है ....
जिन चीजो से आम पब्लिक को फायदा होता है वोह उनका जिक्र नहीं करती ...पर जिनसे उन्हें घाटा होता है ...उसका विधवा विलाप वो जरुर करती है ...इस पे वोह कुछ कन्फ्यूज्ड हो गए और बोले मुझे समझ नहीं आया ....मेने भी बात को खींचना ज्यादा उचित नहीं समझा ....
पर अचानक उनके चेहरे पे इक चमक आई और बोले ...जानतो हो आप ...मेरा हिसार में इक छोटा सा घर था ...जिसे मेने 2004 में बेचना चाहा तो मुझे मुश्किल से 1.5 लाख रुपया मिल रहा था ...मेने उस वक़्त किसी वजह से उसे बेचा नहीं ...पर वही घर जब मैंने 2011 में बेचा जानते हो मुझे कितने का ऑफर मिला ?...मैं बोला यही कोई 8/10 लाख का ...तो उन्होंने इक बड़ी सी मुस्कान ली और बोले नहीं ...मुझे पुरे 52 लाख कैश में मिला ......अगर मैं चाहता तो उसे कम से कम 60 लाख का आराम से बेच लेता ......
मुझे उनकी बातो पे विश्वास सा ना हुआ ...पर जब मेने इंडिया में अपने जानने वाले लोगो से प्रोपर्टी के दाम पूछे तो मेरा सर चकरा गया ...की पिछले 10 सालो में इंडिया में प्रोपर्टी के दाम 10 गुना से 100 गुना तक बढे है ....अब हिसार जैसे शहर में यह हाल तो ...गुडगावं , बंगलोरे , मुंबई , हैयद्राबाद , पूना ,देल्ही, नॉएडा और इनके आस पास के इलाको(NCR) में क्या हाल हुआ होगा? ...इसे आसानी से समझा जा सकता है .....
खेर उस बात को ध्यान में रख मेने जब इंडिया की इकोनोमी ग्रोथ का विश्लेषण किया तो कई सारे कारक इक जिन्न की तह निकल निकल कर आगये ....
मैं यंहा स्प्रष्ट कर दूँ ....की मैं कोई प्रोफेशनल इकोनॉमिस्ट , स्टॉक मार्किट ब्रोकर और किसी फाइनेंसियल बॉडी या संस्था से सम्बंधित नहीं हूँ ....मेरा आकंलन इक अर्थशाश्त्र (इकोनॉमिक्स ) के सीधे से फ़ॉर्मूले से सम्बंधित है ...जो आपने बेसिक अर्थशास्त्र में जरुर पढ़ा होगा ....
अनेपक्षित (अप्रत्याशित ) लाभ ....का सीधा सम्बन्ध अनेपक्षित हानि से होता है ....
सोचने की बात यह है ...की इंडिया में जो आर्थिक/वित्तीय सुनामी का बवंडर उठा है ...
क्या उसकी जड़े गहरी और टिकाऊ है ?
क्या यह बवंडर किसी आने वाले बड़े बुलबुले का नतीजा तो नहीं ?
क्या इस बवंडर को सँभालने कर रखने लायक भारत के पास ...आर्थिक सुविधा , ग्रोथ ,प्लानिंग और सोच है ?
अगर हम पिछले 10 सालो का आकंलन करे तो ...देखते है ...इंडिया में सिर्फ रियल एस्टेट में ही भूचाल नहीं आया है .....
1. 2003 से लेकर 2013 तक इंडियन स्टॉक मार्किट करीब 7/8 गुना हो चुकी है ....
2. सोने के दाम ...पिछले 10 सालो में 6/7 गुना से अधिक हो चुके है ....
3. प्रोपर्टी ...5 से 50 गुना तक बढ़ चुकी है ....
4.. तन्खवा पिछले 10 सालो में 2/3 गुना तो किसी किसी किसी सेक्टर में 5 गुना तक बढ़ी है ....
5. कहने पिने की चीजो के दामो में बढ़ोतरी 2/3 गुना हुई है .....
6. डॉलर और इंडियन रुपया 2000 से 2011 तक स्थिर या रुपया इस समय 20 % तक बढ़ा(2000 में 1 $ = 50 रुपया ) और (2007 में 1 $ = 40 रुपया)
यंहा यह ध्यान रहे रूपये का डॉलर के समक्ष बढ़ना ...ऐसा इंडिया के इतिहास में बहुत कम हुआ था और इतने अधिक समय के लिए शायद पहली बार .....
अगर हम आज के इंडिया की GDP (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट ) देखे जो 4 % के आस पास है .....क्या वोह इस आर्थिक महासागर में उठी ऊँची लहरों का सही आकंलन देती है ?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है ...की क्या आप इस जीडीपी से इन बढती चीजो के दामो को जस्टिफाई कर सकते है ?
अगर हम इंडिया की पिछले 10 साल की जीडीपी का आंकलन करे तो देखेंगे ....उसकी अधिकतम सीमा 10 % के करीब आती है ...जो सन 2006 से 2008 के सालो और 2011 में आई ...पर 2011 के बाद से लगातार इसमें गिरावट आती जा रही है ....
भारत की जीडीपी गिरने का ट्रेंड इक बड़े खतरनाक अलार्म की तरह ले जा रहा है ...की जिस वित्तीय सुधारो को सरकार ने अब तक लागू रखा था ..उनका असर ख़त्म होने के कगार पे है ....
इसे इस तरह से भी देख सकते है ...की इंडिया में कोई नयी ग्रोथ के भविष्य में चांस बहुत कम है ....जब आपके देश की ग्रोथ उसके इन्फ्लेशन यानी मुद्रास्फीति के इक अनुपात से बहुत ज्यादा घट जाए ...तो समझ लेना चाहिए की ...खतरे की घंटी बज चुकी है ...या आपका सकंलन बजट घाटा आपके सकल उत्पादन से ज्यादा होने लगे ....तब ....सरकार को संभल जाना चाहिए .....
अब यह समझना जरुरी है ...की इंडिया में यह आथिक भूकंप क्यों और कैसे आया ? अगर आप इंडिया की पिछले 65 साल की हिस्ट्री देखे तो आपको ऐसी ग्रोथ और प्रोपर्टी के दामो में बढ़ोतरी इतने समय के लिए नहीं दिखलाई देगी...पर इस बार ऐसा हुआ ... इसके कई कारण थे...
1. भारतीय प्रतिभा का विदेशो में काम करना और उनका अपने देश में पैसा भेजना ...जो 1996 से शुरू हुआ और 2005 तक लगातार बढ़ता ही गया .....
2. इंडिया में विदेशी कंपनी के कॉल सेन्टर का बेतहाशा बढ़ना ..जिसकी शुरुवात 2003 से हुई और जिसने अपना चरम 2011 तक जारी रखा ....
3..इंडियन कंपनी का विदेशो में निर्यात ...जो पहले बहुत सिमित फील्ड तक था इस दौरान ...खाने पीने की फ्रोजेन चीजो में (हल्दीराम , दीप , अशोका , घसिताराम , नानक आदि कुछ उदाहरन ) ....मूवीज .....अयस्को का निर्यात बहुत तेजी से बहुत तादाद में बढ़ा ...जिसने इंडियन इकोनोमी को इक लगातार विदेशी मनी फ्लो का बूस्ट जारी रखा ...पर अब इसमें स्थिरता आने लगी है ....
4. आईटी कम्पनी का विदेशी जमीन पर पैर जमाना और वंहा के बिजनेस में अपनी हिसेदारी बढ़ाना ...TCS , इनफ़ोसिस , विप्रो आदि कुछ उदाहरन है ...
5. बहार की आईटी कम्पनी का इंडिया में सस्ती आईटी पॉवर का दोहन भी इंडिया की ग्रोथ में इक बड़ा सहायक हुआ ...जैसे माइक्रोसॉफ्ट , cisco , oracle , intel , google , facebook आदि कुछ नाम है जिन्होंने अपनी कंपनी इंडिया के विभिन्न शहरो जैसे गुडगावों , बेगलोर , पूना और हैदराबाद में स्थापित की और अपने एम्प्लाइज को इक से बढ़ कर इक सैलरी पैकेज दिए ...जो पहले कभी देखे और सुने नहीं गए थे ..
5. बैंकिंग सेक्टर , रियल एस्टेट और बीमा सेक्टर में विदेशी कंपनी (फिडेलिटी , अवीवा , मेटलाइफ ...) के आने से इस फील्ड में इंडिया में नए आयाम खुले और इनमे नयी जॉब ग्रोथ और सैलरी की बढ़ोतरी बेतहाशा हुई .....
6. इस दौरान विदेशी फाइनेंसियल इंस्टिट्यूट ने भारत की स्टॉक मार्किट में अनाप सनाप निवेश किया ...जिसने भारत के फॉरेन रिज़र्व को बहुत तेजी से बढाया .....पर अब यह उलटी दिशा में जा रहा है ..
मेने सारे कारक यंहा तो नहीं लिखे पर ...कुछ मोटे मोटे कारको के कारन ...अचानक आये इस बवंडर ने इंडिया की मार्किट में कमर्शियल रियल एस्टेट और नए युवा वर्ग की इक ऐसी मांग खडी कर दी ...जिसकी पूर्ति ...पुराने इंडियन स्ट्रक्चर में संभव ना थी ...
इन कंपनी की देखा देखि भारतीय एम्प्लायर और सरकार भी अपने एम्प्लाइज की सैलरी बढाने को मजबूर हो गए .....इन सबका इक रिप्पल इफ़ेक्ट (लहरों का असर) यह हुआ ...अचानक इंडियन युवा के पास मोटी तन्खवा आने लगी ...बैंक लोन देने की प्रकिर्या बहुत आसन हो गई .....हर किसी को बैंक से लोन आसानी से मिलने लगा और देखते ही देखते प्रोपर्टी के दाम आसमान छूने लगे ...और बची कुची कसर अंतर्राष्टीय बाजार में बढ़ते सोने की कीमत ने कर दी ....
इंडिया ने बहुत थोड़े से समय के अंदर अपने बाजार को अंतर्राष्टीय कंपनी के लिए खुला छोड़ दिया ...जिससे उन्होंने तेजी से अपने कदम यंहा जमा कर यंहा के लोकल प्रोडक्ट को अपने सस्ते दाम और गुणवता से बाजार से हमेशा हमेशा के लिए बहार कर दिया ....चीन का मिलने वाला सस्ता सामान इस का इक उदहारण भर है .....इंडिया ने अपने लोह , तांबे , जिंक , मग्नीज और कोयले के अयस्को को सस्ते दामो में अंतर्राष्टीय कंपनी को बेचना शुरू कर दिया .....जिससे उसे कुछ डॉलर तो मिले पर ...अपने प्राकृतिक खजाने को खाली भी कर दिया .....
यह सब इतने तक ही सिमित रहता तो भी ठीक था ...सरल टेलिकॉम निति ने इस बवंडर को और ऊँचा उठाने का काम किया ....इंडियन मार्किट में टेलिकॉम का बूम भी इन सारे बूम के साथ जुड़ गया ....और देखते ही देखते विदेशी कंपनीयो का नेटवर्क इंडिया के मोबाइल नेटवर्क को हडप कर गया ......
पर अब यह चमक धीमी पड़ने लगी है .....बहार की कंपनीयो का निवेश इंडिया में दिन पे दिन गिरता जा रहा है ...रुपया जो किसी ज़माने में डोलोर के मुकाबले बेहतर होता था ...अब रोज अपने नये इतिहासिक निम्न की तरफ अग्रसर है ....हर सेक्टर अपनी संतृप्त स्थिति में या तो पहुँच चूका है ...या पहुँचने वाला है ....
विदेशी निवेश के घटने और डोलोर के बहार जाने से ..आने वाले समय में नगदी की समस्या विकराल रूप ले सकती है ....जिसे हम मंदी भी बोलते है .....क्योकि पिछले दस सालो में अगर रिज़र्व बैंक की बैलेंस शीट को पढ़ा जाए तो यह आसानी से समझा जा सकता है ...कितने बिलिओंन डोलोर का निवेश इन सालो (2003 से 2011)में इंडिया में हुआ था और पिछले 2 सालो (2011 - 2013 ) में उसकी क्या रफ़्तार है ?....
बहार की कंपनीयो का इंडिया में निवेश दिन पे दिन कम होता जा रहा है , एक्सपोर्ट जरुर थोडा बढ़ रहा है ..पर गिरते रुपये से वोह यंहा इस अर्थ वयवस्था को पूरी तरह संभल नहीं सकता ....तेल के दामो में वृधि और अंतर्राष्टीय कर्जे की किश्ते धीरे धीरे इंडिया के फॉरेन रिज़र्व को चाट रही है ....
बढती प्रोपर्टी के दामो ने ...लोगो पे ..मकान कर्ज के रूप में ऐसा जिन्न पीछे लगा दिया है ...जिससे पीछा छुड़ाना आने वाले वक़्त में आसन नहीं होगा ....उसपे नौकरियों के घटते अवसर और दिन रात महंगी होती पढाई ने ..उच्च शिक्षा पे इक नया प्रश्न चिन्ह लगाना शुरू कर दिया है ....
पिछले 2 सालो से गिरती इंडिया की जीडीपी ....बढती महंगाई और रोजगारो में कमी ...चीख चीख कर आने वाले समय की मुनादी कर रही है ...की हमें इस स्ट्रक्चर को टूटने से बचाने के लिए ठोस बुनियादी कदम उठाने होंगे ....
पर बड़े अफ़सोस के साथ लिखना पढता है ...की भरतीय राजनीती की वर्तमान हालत को देखते हुए ..मुझे अभी तक किसी भी पार्टी के बड़े नेता से ऐसा सुनने को नहीं मिला ...जिन्हें आने वाली भयानक महंगाई और बेरोजगारी का जरा भी इल्म है ....
अगर वक़्त रहते जरुरी कदम उठाये जाए जैसे ...एक्सपोर्ट को बढाना ....उसके लिए चीजो में गुंडवता के ऊँचे माप दंड होना ....स्टॉक मार्किट पे सेबी का बेहतर कण्ट्रोल , बैंकिंग सेक्टर का लोंन देने का तरीका .... जमीनों का बेतहाशा व्यवसायीकर्ण रोकना ...कृषि की पैदावार बढ़ाना .....बजट घाटे को कम करना ....आलतू फालतू राजनीती के नाम पे बटने वाले फ्री के लोन और कर्ज माफ़ी को रोकना .....दैनिक जरुरत की छोटी मोटी चीजो का चीन से आयत पूरी तरह रोकना ....और छोटे घरलू उधोगो को बढ़ावा देना आदि शामिल है ....
अब वक़्त आ चूका है ...हम आयत की परिभाषा अपने निर्यात के तराजू में रख कर करे ......
विदेशी कंपनी का लोकल कंपनी के साथ मर्जर ....अंतरराष्टीय नियमो और भारत के उपभोक्ता और घरेलु उधोग के हितो को ध्यान में रख कर किया जाए ....
अगर हम अभी भी अपने मूलभूत ढांचे में सुधर लाये ...जैसे ...नए बिसनेस को खोलने की प्रकिर्या को आसन बनाना ....बिजली , पानी और ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा होना ....तो शायद हम आने वाले वक़्त में संभल जाए ????
मुझे भय है ....कंही इंडिया का हश्र ...इटालियन लीरा , अर्जेंटीना की अर्थवयवस्था , मेक्सिको की वयवस्था , जापान की टेक्नोलॉजी , ताइवान की इंडस्ट्रीज और ग्रीक की आर्थिक स्थिति जैसा ना हो जाए !!!!
By
Kapil Kumar
Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.' ”
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